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जानें, मुर्गी पालन  से जुङी  कुछ महत्वपूर्ण बातें

प्राचीन काल से ही मुर्गी पालन ग्रामीणों कि आर्थिक स्थिति को सुधारने मे काफी मददगार साबित हुआ है।

प्राचीन काल से ग्रामीण परिवार अपने घर के आँगन मे या घर के पीछे खाली स्थान मे परंपरिक तरीकों से मुर्गी पालन करते हुए आ रहे है। 

मुर्गी पालन मे मुर्गी के चूजा यानि की मुर्गी के बच्चे को फार्म मे लाकर पाला जाता है। 

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मुर्गी पालने का मुख्य उदेश्य अंडा उत्पादन के लिए, मांस उत्पादन एवं चूजा उत्पादन के लिए मुर्गी पालन किया जाता है।

आमतौर पर मुर्गियों में रानीखेत या टूनकी, गम्बरों, ओमफ्लाइटिस(नाभि मे सूजन), सालमोनेला, ब्रूडर निमोनिया, अफ्लाटॅाक्सीन, काक्सीडिओसिसः आदि सम्बन्धी रोग होते हैं। इन बीमारियों का लक्षण जैसे ही दिखे इसके इलाज के लिए अपने निकट के मवेशी अस्पताल के पशुचिकित्सक से सलाह लेकर ही इलाज करावें।

ब्रायलर मुर्गी पालन मांस के लिए किया जाता है।

लेयर मुर्गी पालन अंडे के उत्पादन के लिए किया जाता है। 

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मुर्गियों से प्राप्त खाद मे नाईट्रेट/यूरिया की मात्रा पाई जाती है। इस खाद को फसलों मे डालकर फसलों की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।

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बेकयार्ड मुर्गी पालन यानि की घर के पिछवारे मे मुर्गी पालन करना। वर्तमान समय मे देशी एवं बेहतर कम लागत वाली मुर्गियों के नस्लों को आसानी से बेकयार्ड मे पाला जा सकता है। बेकयार्ड मुर्गी पालन ग्रामीण समुदाय को अजीविका प्रोटीन युक्त खाद्य एवं स्वरोजगार प्रदान करने मे काफी मदद कर रहा है।

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