हमारे देश मे केला की खेती (Kela ki kheti ) प्राचीन काल से ही होते आ रहा हैं और अभी भी इसकी खेती बङे पैमाने पर किया जाता हैं तभी तो केला उत्पादन मे हमारे देश भारत का पूरे विश्व मे प्रथम स्थान हैं। केले का सबसे ज्यादा उत्पादन हमारे देश मे तमिलनाडु राज्य मे होता हैं। केले के प्रमुख्य उत्पादक राज्य तमिलनाडू, महराष्ट, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक हैं। केला एक सस्ता, परिपूर्ण, पोषक तत्वों से भरपूर फल हैं। केले के फल मे फाइबर, पोटैशियम, विटामिन सी, विटामिन बी 6, और बहुत सारे एंटीऑक्सिडेंट प्रचुर मात्रा मे पाए जाते हैं। केला दक्षिण अफ्रीका का मुख्य भोजन (staple food) है। केला का दुनिया भर मे लाखों लोग सेवन करते हैं केला किसी भी अन्य फल या सब्जी की तुलना मे बेहतर संतुलित आहार प्रदान करता हैं।
कच्चे केले से सब्जी एवं अन्य व्यंजन बनाये जाते हैं जो लोगों को खूब पसंद आते हैं सब्जी वाले केले की एक अलग किस्म ही होती हैं। हमारे देश मे केला का पौधा विशेष धार्मिक महत्व रखता हैं इसका पौधा पूजा, शादी विवाह एवं अन्य शुभ कार्यों के लिए प्रयोग मे लाया जाता हैं। केले के पत्तों पर प्राचीन काल से ही खाना खाया जाता हैं आज के समय मे भी भारत के कुछ राज्यों मे केले के पत्ते पर खाना खाया जाता हैं। केले के फलों का उपयोग पकने पर खाने हेतु एवं कच्चा केला सब्जी बनाने के अलावा इससे आटा, बनाना चिप्स, बनाना कुकीज, बनाना फिग, केले का सॉस, केले की मीठी चटनी एवं अन्य उत्पाद भी बनाये जाते हैं। केले के आवरण (शीथ) के अवशिष्ट से टोकरी, बक्से, चटाई, प्याले, प्लेट एवं स्कचर अवशिष्ट से कागज के उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं।
केला का वानस्पतिक नाम मूसा पेराडीसियका हैं एवं यह मुसेसी कुल का पौधा हैं इसका गुणसूत्र संख्या 22, 33, 44 हैं। केला का उत्पति स्थान दक्षिण पूर्व एशिया (वर्मा-इंडो चाइना क्षेत्र) हैं। केला के फल का प्रकार बेरी हैं एवं खाने योग्य भाग मिजोकार्प व एंडोकार्प हैं केला पोटैशियम एवं कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्त्रोत्र हैं। केला का पौधा अपने जीवन काल मे एक ही बार फल देता हैं। (Banana Farming in hindi)
आज के इस लेख मे केला की रोपाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी (Kela ki kheti ki jankari) देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी केला की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको केला की खेती (banana ki kheti) से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।
Page Contents
केला के किस्म (Kela ke kism)
ड्वार्फ केवेन्डीश (Dwarf Cavendish) | रोबस्टा (Robusta) |
पूवन (Poovan) | फ़िहा 01 (FIHA 01) |
लाल वेल्ची (Lal Velchi) | नेन्ड्रेन (Nendren) |
मंथन (Manthan) | कुनन (Kunan) |
उधम (Udham) | लेडी फिंगर (Lady Finger) |
रसथली (Rasthali) | चम्पा (Champa) |
करपूरवल्ली (Karpoorvalli) | नेय पूवन (Ney Poovan) |
नेरकथली (Nerkathli) | ग्रैड नेने (Grand nene) जी-9 (G-9) |
अमृत सागर (Amrit Sagar) | चकिया (Chakia) |
दूध सागर (Dudh Sagar) | मोनोहर (Monohar) |
को 1 (CO 1) | रेड बनाना (Red Banana) |
बी आर एस 1 (BRS 1) | नामराय (Namarai) |
बी आर एस 2 (BRS 2) | सिंघन (Singhan) |
निजलीपूवम (Nijalipoovan) | एरिनकापूवम (Ayrinkapoovam) |
ऊपर के सारणी मे कुछ केला के किस्मों का नाम दिया गया है।
केला की खेती कैसें करें (Kela ki Kheti kaise kare)
केला की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and Climate for Banana Cultivation)
केला की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होता हैं अच्छे जल निकासी वाली एवं जीवांशयुक्त भूमि इसकी खेती के लिए अच्छा होता हैं। किसानों को केला की खेती (Kela ki unnat kheti) करने के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं। खासकर केले की खेती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मे की जाती हैं। गर्म एवं सम जलवायु केला की खेती के लिए अच्छा माना जाता हैं।
केले की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for banana cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से दो बार क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद समतल खेत मे लाइनों मे गड्ढा तैयार करके रोपाई की जाती हैं। किसानों को खेत की जुताई हो जाने पर सिंचाई एवं जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
केला की रोपाई के लिए गड्ढा की तैयारी (Pit preparation for planting banana)
खेत की तैयारी हो जाने के बाद लाइनों मे गड्डा किस्मों के आधार पर बनाए इस बात का खास ख्याल रखें। अप्रैल माह मे गड्डे की खुदाई करें और 15 से 20 दिन गड्डे को खुला छोङ दे जिससे की गड्डे पर सूर्य का प्रकाश पङे। खुदाई के 15 से 20 दिन बाद गड्डे मे गोबर की खाद एवं मिट्टी को मिलाकर भर दें।
केला की रोपाई का समय (Kela ki Ropai ka samay)
अगर सिंचाई की उचित व्यवस्था हो तो केले की रोपाई का कार्य अप्रैल-मई माह मे भी किया जा सकता हैं पुत्तियों के रोपण का समय 10 जून से 10 जुलाई तक उपयुक्त होता हैं। केले की रोपाई सही समय पर ही करना चाहिए।
केले की पौध की रोपाई (transplanting banana seedlings)
पौध रोपण मे केले का रोपण पुत्तियों के द्वारा किया जाता हैं केले की नर्सरी मे दो तीन माह की पुरानी पुत्तियां लगाने योग्य हो जाती हैं। तीन माह की तलवार नुमा पुत्तियाँ जिनमे घनकंद पूर्ण विकसित होता हैं उसका रोपाई मे इस्तेमाल करते हैं। इन पुत्तियों का रोपाई तैयार गड्ढों मे करनी चाहिए। पौध रोपण के समय भूमिगत तने का 45 सेंटीमीटर नीचे का भाग छोङकर ऊपर का भाग काट देना चाहिए। सकर्स को ट्राइकोडर्मा नामक फफूँदीनाशक 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल मे उपचारित करके रोपाई करना चाहिए।
केले की खेती मे इंटरक्रॉपिंग (intercropping in banana farming)
कई किसान ऐसे हैं जो केले की खेती मे इंटरक्रॉपिंग करके अच्छे पैसे कमाते हैं किसान इंटरक्रॉप के रूप मे सब्जी और फूल फसलों जैसे फूलगोभी, मुली, पालक, मिर्च, बैगन, भिंडी, लौकी, गेंदा और रजनीगंधा को सफलतापूर्वक उगा रहे हैं। कर्नाटक और केरल जैसे तटीय क्षेत्रों में, केले को नारियल और सुपारी के साथ लगाया जाता है। दक्षिण भारत मे सुपारी, नारियल, और कसावा सहित मिश्रित फसलों फसलों को उगाना सामान्य हैं।
केले की फसल मे सिंचाई (Kela ki sichai kab kare)
सभी फलों मे केले का जल मांग सबसे ज्यादा हैं केला की फसल को पानी की अधिक आवश्यकता पङती हैं। गर्मियों के दिनों मे सप्ताह मे एक बार तथा ठंडे के मौसम मे 15 से 20 दिनों के अंतराल पर इसकी फसल को सिंचाई करते रहना चाहिए। केले की फसल को आवश्यकता के अनुसार ही सिंचाई करें। केले की फसल की दो सिंचाई हो जाने के बाद निराई-गुङाई का कार्य अवश्य ही करना चाहिए जिससे खरपतवार से होने वाले हानि से फसल को बचाया जा सके।
चूकी किसान जानते हैं की केले की फसल को पानी की आवश्यकता अधिक होता हैं जिससे अधिक बार फसल की सिंचाई करना पङता हैं इसलिए संभव हो तो किसानों को ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना चाहिए। ड्रिप सिंचाई का केले की खेती मे इस्तेमाल होने से पानी की बचत होगी साथ ही केले की खेती से अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता हैं।
मल्चिंग (Mulching)
केले की खेती मे मल्चिंग पौधों के चारों ओर जमीन पर की जाती हैं ताकि खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सके, मिट्टी मे नमी बरकरार रखी जा सके एवं जड़ों का बेहतर विकाश हो सके। किसान मुख्यतः दो प्रकार के मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं पहला तो प्राकृतिक मल्चिंग का जिसमें पेङो के पत्ते, घास, भूसा, फसलों के अवशेष, लकङी का छिलका एवं बुरादा आदि का प्रयोग मल्चिंग करने मे करते हैं। दूसरा वो जो कृत्रिम पदार्थों से निर्मित हो जैसे कि प्लास्टिक मल्चिंग।
केला की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in banana crop)
केला की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण केला की खेती (Kela ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए पहले चार महीनों के दौरान नियमित रूप से निराई महत्वपूर्ण है।
ट्रेसींग
ट्रेसींग मे केले के फसलों की रोग ग्रस्त पत्तियों, शाखाओं, तना तथा पुष्प गुच्छों को खेत से निकालकर जला देते हैं।
डिसकरिंग (Desuckering)
केला भूमिगत तने से अधिकांश सकर्स उत्पन्न करता हैं केले के पौधे से सकर्स को हटाना ही डिसकरिंग (Desuckering) के रूप मे जाना जाता हैं।
मिट्टी चढ़ाना (Banana Earthing up)
केले की फसल मे समय पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए जिससे की केले की फसल गिरने से बच सके। मानसून शुरू होने से पहले केले की फसल मे मिट्टी चढ़ाने के कार्य को कर लेना चाहिए। पौधों के जङो के पास मिट्टी इसलिए भी चढ़ाया जाता हैं कि यह पानी के जमाव को बरसात के मौसम मे रोकने का कार्य करता हैं।
केला के पौध को सहारा देना (Supporting banana plants)
केला के ऊंचे किस्मों को सहारा देना काफी जरूरी होता हैं। केले के पौधों को अगर सहारा नही दिया जाए तो तेज हवा चलने पर पौधे गिर भी सकते हैं। केले के पौधे मे फल लगने के बाद केले के पौधे को सहारा देना काफी आवश्यक हो जाता हैं अतः आवश्यकता पङने पर बांस या अन्य लकङी से सहारा देना चाहिए। लकङी को कैंची बना कर पौधों को दोनों तरफ से सहारा देना चाहिए ताकि पौधे गिर न सके।
केला की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests in banana crop)
केला की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट कन्द विविल, थ्रिप्स एवं सूत्रकृमि आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा केला की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है केला की फसल मे प्रमुख्य रोग पनामा विल्ट, सिगाटोका पूर्ण दाग, इरविनिया गलन, गुच्छा शीर्ष एवं केले का स्ट्रीक विषाणु आदि जैसे रोग केला की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
केले की कटाई (Banana harvesting)
केला की कटाई फसल की आयु, परिपक्वता, किस्म तथा बुआई के समय के आधार पर निर्भर करता हैं जितना केला बेचना होता हैं उतना ही केला की कटाई करें काफी समय तक केला की कटाई करके रखने पर केला खराब होने लगता हैं। केला की कटाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की केले की परिपक्वता मानक हैं फलों मे कोणिय भाग न रह कर वे भरे हुए हो जाए तो उसकी कटाई करनी चाहिए। फलों का भरा हुआ होना केवल कुछ ही किस्मों के लिए लागू होता हैं यह सब्जी वाले केले मे लागू नही होता हैं क्योंकि वे पूरे तैयार अवस्था मे भी कोणीय ही रहते हैं।
केले की उपज (Banana Yield)
केला की उपज केला की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
✅ केला से बने उत्पाद को ऑनलाइन यहाँ से ऑर्डर किया जा सकता हैं – Click here
केला से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Banana FAQs)
केले के फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए किसका इस्तेमाल किया जाता हैं? |
केले के फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए एथिलीन का इस्तेमाल किया जाता हैं। |
केले का एक पेङ कितने साल तक फल देता हैं? |
केले का एक पौधा अपने जीवन काल मे केवल एक बार फल देता हैं। |
केले की तासीर क्या है?
|
केले का तासीर ठंडा होता हैं। |
तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी केला की खेती (Banana Farming in Hindi) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।
यह भी पढे..