Thursday, May 2, 2024

Arhar ki Kheti : अरहर की खेती कैसें करें, यहां से जानें अरहर की खेती की A टू Z जानकारी। Arhar Farming in hindi

अरहर (Pigeon Pea) जिसे की तुअर या रेड ग्राम के नाम से जानते हैं दलहनी फसलों मे अरहर का विशेष स्थान हैं। दलहनी फसलों मे हमारे प्रदेश मे चने के बाद अरहर का प्रमुख स्थान हैं। अरहर सभी दलहनी फसलों मे सबसे ज्यादा सूखा सहनशील करने वाली फसल हैं। अरहर की खेती (Arhar ki Kheti) मुख्य रूप से खरीफ के मौसम मे की जाती हैं इसकी खेती हमारे देश के लगभग सभी राज्यों मे की जाती हैं। कम सिंचाई वाले क्षेत्रों तथा बारानी क्षेत्रों के लिए अरहर की फसल काफी उपयोगी हैं क्योंकि इसकी फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नही होती हैं। अरहर को मिश्रित फसल के रूप मे किसी अन्य फसल के साथ बुआई करके अतिरिक्त लाभ लिया जा सकता हैं। ज्वार, बाजरा, उर्द एवं कपास आदि अरहर के साथ बोई जाने वाली प्रमुख फसलें हैं। इसकी फसल से अरहर तो प्राप्त होती ही हैं साथ ही इसकी लकङी जलाने, छप्पर छाने, झोपङी बनाने, कृत्रिम मल्च आदि मे प्रयोग होती हैं। अरहर की भूसी एवं चूनी को पशुओं के आहार के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।

अरहर का ज्यादातर इस्तेमाल हमारे घरों मे दाल के रूप मे किया जाता हैं। मुख्य रूप से खाने मे इस्तेमाल की जाने वाली अरहर की दाल सबसे उत्तम माना जाता हैं। अरहर की दाल (Arhar ki daal) मे लगभग 20 से 21 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता हैं। अरहर की दाल से ऊर्जा, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज पदार्थ आदि पोषक तत्व मिलते हैं जो मानव के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं यह आसानी से पचने वाली दाल हैं इसे बूढ़े, बच्चे एवं नौजवान खा सकते हैं।

अरहर का पौधा सीधा एवं झाङीनुमा होता हैं इसकी पत्तियां अंडाकार होती हैं जो की पौधों के शाखाओं मे लगी होती हैं। इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता हैं अरहर के फूल पीले और लाल रंग के होते हैं। अरहर का वानस्पतिक नाम केजेनस केजन एल. (Cajanus cajan L.) हैं यह लेग्युमिनेसी कुल का पौधा हैं। इसका उत्पत्ति स्थान अफ्रीका को माना जाता है। भारत मे अरहर की खेती का प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश हैं।

Arhar ki Kheti
Arhar ki Kheti

आज के इस लेख मे अरहर की बुआई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी अरहर की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको अरहर की खेती (Arhar Farming in hindi) से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।

अरहर की किस्म (Arhar ki kism)

प्रभात (Prabhat) ग्वालियर 3 (Gwalior 3)
आई.सी.पी.एल 88039 (I.C.P.L 88039) यू.पी.ए.एस 120 (U.P.A.S 120)
बी.डी.एन 2 (B.D.N 2) आई.सी.पी.एल 151 (I.C.P.L 151)
नरेंद्र अरहर 1 (Narendra Arhar 1) आई.सी.पी.एल 87 (I.C.P.L. 87)
नरेंद्र अरहर 2 (Narendra Arhar 2) बहार (Bahar)
आजाद अरहर (Azad Arhar) उपास 120 (Upas 120)
अमर (AMAR) पारस (Paras)
पूसा 9 (Pusa 9) शरद (Shrad)
बी.आर 65 (B.R 65) मानक (Manak)
पूजा 992 (Puja 992) बी.डी.एन 1 (B.D.N. 1)
पूसा 885 (Pusa 885) आई.सी.पी.एल 87119 (I.C.P.L 87119)
बिरसा अरहर 1 (Birsa Arhar 1) टाइप 21 (type 21)
मालवीय चमत्कार (मालवीय 13) अभया (Abhaya)
लक्षमी (Laxmi) पलान्ड़ू (एल.आर.जी. 332) Palandu (L.R.G. 332)
प्रगति (Pragti) मारुति (Maruti)
एम.ए 6 (M.A 6) पूसा 16 (Pusa 16)
राजीव लोचन (Rajeev Lochan) आई.सी 550413 (I.C 550413)
टी.ए.टी 9629 (T.A.T 9629) जे.ए 4 (J.A 4)
टी.जे.टी 501 (T.J.T 501) जे.के.एम 189 (J.K.M 189)
राजेश्वरी PT0012 (Rajeshwari PT0012) जे.के.एम 7 (J.K.M 7)
बी.आर.जी 2 (B.R.G 2) बी.डी.एन 711 (B.D.N 711)
बी.डी.एन 708 (B.D.N 708) एन.डी.ए 2 (N.D.A 2)
बी.एस.एम.आर. 853 (B.S.M.R 853) बी.एस.एम.आर. 736 (B.S.M.R 736)
पूसा 855 (Pusa 855) पूसा 33 (Pusa 33)
पी.ए.यू 881 (P.A.U 881) आई.सी.पी.एल 84031 (I.C.P.L 84031)
पंत अरहर 291 (Pant Arhar 291) जवाहर अरहर 4 (Jawahar Arhar 4)
एम.ए.एल 13 (M.A.L 13) पी.पी.एच 4 (P.P.H 4)
आई.सी.पी.एल 8 (I.C.P.L 8) जी.टी.एच 1(G.T.H 1)
आई.सी.पी.एच 2671 (I.C.P.H 2671) आई.सी.पी.एच 2740 (I.C.P.H 2740)
वी.एल.अरहर 1 (V.L Arhar 1) बी.डी.एन. 2 (B.D.N. 2)
जी.टी 101 (G.T 101) पूसा 991 (Pusa 991)
बी.एस.एम.आर.736 (B.S.M.R 736) एम.ए 3 (M.A 3)

ऊपर के सारणी मे कुछ अरहर के किस्मों का नाम दिया गया है।

कैसे करें अरहर की खेती (Arhar ki Kheti Kaise Karen)

अरहर की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and Climate for Arhar ki Kheti)

अरहर की खेती करने के लिए सामान्य पी-एच मान वाली बलुई दोमट मृदा अच्छी होती हैं इसकी खेती के लिए वैसी मृदा अच्छी नही होती हैं जो मृदा लवणीय तथा क्षारीय हो। अच्छे जल निकासी वाली एवं उच्च उर्वरता वाली भूमि इसकी खेती के लिए अच्छा होता हैं। किसानों को अरहर की खेती (arhar ki unnat kheti) करने के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं।

अरहर की शुरुआती अवस्था मे अच्छी वृद्धि एवं विकाश के लिए गर्म अर्थात नम जलवायु की आवश्यकता होती हैं अरहर की खेती (arhar ki vaigyanik kheti) नम अथवा सूखे दोनों ही प्रकार के इलाकों मे भली भांति की जा सकती हैं। अगर सूखे क्षेत्रों मे अरहर की खेती की जा रही है तो फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। जिन क्षेत्रों मे बहुत अधिक वर्षा होता हैं उन क्षेत्रों मे अरहर की खेती की सलाह नही दी जाती हैं। 

अरहर की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for Arhar ki Kheti)

किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से दो बार क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। किसानों को खेत की जुताई हो जाने पर सिंचाई एवं जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए।

अरहर की बुआई का समय (Arhar ki buai ka samay)

किसानों को अरहर की बुआई सही समय पर करना चाहिए क्योंकि बुआई के समय का प्रभाव सीधा उपज पर पङता हैं। जिन क्षेत्रों मे सिंचाई की उचित व्यवस्था हो उन क्षेत्रों मे 1 से 15 जून तक अरहर की बुआई कर देनी चाहिए। वैसे किसान जो वर्षा के पानी पर निर्भर करते हैं उन किसानों को अरहर की बुआई जुलाई के प्रथम सप्ताह मे ही कर देनी चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह के बाद अरहर की बुआई करने पर पैदावार मे भारी कमी आने की संभावना हो जाती हैं। 

Arhar ki Kheti
Arhar ki Kheti
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए अरहर की बीज दर (Arhar seed rate for sowing in 1 hectare)

जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अरहर की बीज की आवश्यकता होती हैं वहीं मध्यम पकने वाली किस्मों के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।

बीज की गहराई एवं दूरी (Seed depth and spacing)

जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए कतारों की बीच की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर एवं मध्यम तथा देर से पकने वाली अरहर की किस्मों के लिए 60 से 65 सेंटीमीटर रखना चाहिए। कम अवधि के किस्मों के लिए पौध अंतराल 10 से 15 सेंटीमीटर एवं मध्यम तथा देर से पकने वाली किस्मों के लिए 20 से 25 सेंटीमीटर रखें।

अरहर के बीज का बीजोपचार (Seed Treatment of Arhar Seeds)

अरहर की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है। थायरम + कार्बेन्डाजिम (2:1) के तीन ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज मे मिलाकर बीजों को उपचारित करें। कीटनाशी एवं फफूंदनाशक से बीजों को उपचारित करने के बाद राइजोबियम एवं पी.एस.बी. (Phosphate Solubilizing Bacteria) से बीजोपचार करते हैं।

अरहर की बुआई की विधि (Arhar ki buai ki vidhi)

उठा हुआ बेड/मेङ बनाकर अरहर की बुआई करने पर लगभग 25 प्रतिशत तक पैदावार मे बढ़ोतरी की जा सकती हैं बेड पर खेती करने से शुरुआती दिनों मे पौधों की बढ़वार अधिक होने के साथ ही साथ उकठा रोग लगने की संभावना काफी कम हो जाती हैं। अरहर की बुआई पंक्तियों मे करना इसकी खेती के लिए अच्छा माना जाता हैं। अरहर की बुआई सीड ड्रिल अथवा हल के पीछे करना अच्छा रहता है इसकी बुआई 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई मे करनी चाहिए।

अरहर की फसल मे सिंचाई (Arhar ki sichai kab kare)

सिंचाई की सुबिधा उपलब्ध हो तो एक हल्की सिंचाई फलियाँ बनने की अवस्था पर करनी चाहिए। किसानों को अरहर की फसल की सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अरहर मे फूल आने पर सिंचाई न करें सिंचाई करने पर फूल झङ जायेगें। 

अरहर की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Arhar crop)

अरहर की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण अरहर की खेती (arhar dal ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए बुआई के 25-30 एवं 45-50 दिन के बाद खुरपी की मदद से या मशीन द्वारा निदाई एवं गुङाई करें।

यह भी पढे.. पढ़िए, अरहर की किस्मों एवं इसकी विशेषताएं और पैदावार के बारे में

अरहर की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of Arhar crop)

अरहर की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट फली मक्खी, फली छेदक, फली का मत्कुण, प्लू माथ एवं ब्रिस्टल बीटल आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा अरहर की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है अरहर की फसल मे प्रमुख्य रोग उकठा रोग, बांझपन विषाणु रोग एवं फायटोपथोरा झुलसा रोग आदि जैसे रोग अरहर की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।

अरहर की फसल की कटाई एवं दौनी (Arhar crop harvesting)

अरहर की अलग-अलग किस्मों के अनुसार अरहर की फसल की पकने की अवधि होती हैं यह अवधि 120 से 300 दिनों की होती हैं इतनी अवधि मे अरहर की कोई भी किस्म पककर तैयार हो जाता हैं। जब अरहर की फसल मे अरहर की पत्तियां पककर गिरने लगे एवं जब तीन चौथाई फलियां भूरी हो जाए तो फसल की कटाई करनी चाहिए। फसल की कटाई हो जाने पर फसल को धूप मे अच्छे से सूखने के लिए सीधे खङा कर दे। सुख जाने पर गहाई करें। गहाई डंडों से या थ्रेशर से करके दानों को अलग कर ले। गहाई हो जाने के बाद अरहर के बीज को अच्छी तरह से धूप मे सुखा लें। 

Arhar ki Kheti
Arhar ki Kheti
अरहर का भंडारण (storage of pigeon pea)

अरहर का भंडारण अच्छे से सुखाने के बाद ही करें अगर अरहर अच्छे से सुखा न होगा तो अरहर खराब हो सकता है। खूब अच्छे से सुखाकर 8 से 10 प्रतिशत नमी पर भंडारण करें।

अरहर की उपज (Arhar yield)

अरहर की उपज अरहर की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 15 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है एवं इसकी खेती से 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक लकङी प्राप्त होता हैं। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।

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अरहर की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
अरहर किसकी फसल है?
अरहर खरीफ की फसल हैं।
अरहर की बुवाई कब होती है?
किसानों को अरहर की बुआई जुलाई के प्रथम सप्ताह मे ही कर देनी चाहिए।
अरहर का दूसरा नाम क्या है?
अरहर का दूसरा नाम तुअर या रेड ग्राम हैं।
तुअर और अरहर में क्या अंतर है?
अरहर और तुअर में कोई अंतर नहीं है दोनों एकही नाम हैं। 
अरहर कौन सी फसल है खरीफ या रबी?
अरहर खरीफ की फसल हैं।
अरहर का परिवार क्या है?
यह लेग्युमिनेसी परिवार का पौधा हैं।
अरहर को इंग्लिश में क्या कहा जाता है?
अरहर को इंग्लिश में Pigeon Pea एवं Red Gram कहा जाता हैं।

तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी अरहर की खेती (arhar dal ki kheti in hindi) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।

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