Thursday, May 2, 2024

Chana ki kheti : चना की खेती कब और कैसें करें, जानिए बुआई का सही समय से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी। Gram Farming in Hindi

चना (Gram) जिसे सभी लोग भली भांति जानते हैं चने के दाने से बनायी गई दाल को खाने मे उपयोग किया जाता हैं साथ ही इसके दानों को पीसकर बेसन आदि भी बनाया जाता हैं जिससे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट, चटपटा व्यंजन एवं मिठाइयाँ बनायी जाती हैं। इन व्यंजनों एवं मिठाइयों को लोग खूब पसंद करते हैं। चने के दाल से बना चना दाल तड़का, हरी अवस्था मे चने के दानों से बना चने का बचका एवं चने की हरी पत्तियों से बना साग को लोग काफी पसंद करते हैं। चने से चने के दाल बनाने के उपरांत चने का छिलका एवं भूसा प्राप्त होता हैं जो पशुओं के चारे मे काम आता हैं. चना जानवरों और विशेष रूप से घोङो को खिलाने मे काम आता हैं।

पोषण के दृष्टि से भी चना का सेवन करना सेहत के लिए अच्छा माना जाता हैं क्योंकि चना मे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, कैल्सियम, आयरन एवं नियासीन आदि की अच्छी मात्रा पायी जाती हैं। 100 ग्राम चने के दाने मे औषतन 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम वसा, 11 ग्राम पानी, 61.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 149 मिलीग्राम कैल्शियम, 7.2 मिलीग्राम आयरन, 0.14 मिलीग्राम राइबोफलेविन एवं 2.3 मिलीग्राम नियासीन पाया जाता हैं। चने के अंकुरित बीजों को खाने से रक्त का शुद्धिकरण होता हैं एवं स्कर्वी रोग की उग्रता कम हो जाती हैं। चना सस्ता एवं अच्छी प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं।

चना मुख्यतः सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों मे रबी ऋतु मे उगाए जाने वाली दलहनी फसल हैं चना को किसी भी प्रकार की मिट्टी मे उगाया जा सकता हैं लेकिन अच्छी उपज पाने के लिए बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता हैं। चना दलहनी फसल है जिस वजह से इसकी जड़े गांठ वाली होती है, इन जड़ो में सूक्ष्म जीवाणु उपस्थित होते है, जो वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) कर मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं मृदा स्वास्थ्य मे सुधार होता हैं। चना की फसल वातावरण की नाइट्रोजन को भूमि मे जमा करके मिट्टी की उर्वरता को सुधारने मे मुख्य भूमिका निभाता हैं।

Chana ki kheti
चना

चना को चिकपी (chickpea), बंगाल ग्राम आदि नामों से जाता हैं यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं देशी और काबुली। चने की उत्पति स्थान दक्षिण पश्चिमी एशिया हैं एवं इसका वानस्पतिक नाम साइसर एरिटेनम (Cicer arietinum) हैं. यह लेग्युमिनेसी कुल का पौधा हैं। विश्व मे चना फसल के कुल क्षेत्रफल एवं उत्पादन मे भारत की महत्वपूर्ण भूमिका हैं भारत मे चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, आंध्रप्रदेश एवं राजस्थान मे की जाती हैं। मध्यप्रदेश चने का सबसे अधिक क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य हैं भारत विश्व में दालों का बड़ा उत्पादक हैं भारत के कुल दलहन उत्पादन मे भी चना की फसल (chane ki fasal) की मुख्य भागीदारी हैं।

आज के इस लेख मे चना की बुआई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी चना की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको चना की खेती (Gram Farming in Hindi) से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।

Page Contents

चना की किस्में (Chana ki kisme)

पूसा 362 (Pusa 362) पन्त चना 186 (Pant Chana 186)
पूसा 372 (Pusa 372) पन्त चना 114 (Pant Chana 114)
पूसा 256 (Pusa 256) पन्त चना 4 (Pant Chana 4)
पूसा 547 (Pusa 547) पन्त चना 3 (Pant Chana 3)
पूसा 5023 (Pusa 5023) आई.सी.सी.सी. (I.C.C.C 37)
पूसा 2085 (Pusa 2085) के.डब्ल्यू.आर. 108 (K.W.R 108)
पूसा 5028 (Pusa 5028) राजेन्द्र चना 1 (Rajendra Chana 1)
पूसा ग्रीन 112 (Pusa Green 112) सी. 235 (C. 235)
पूसा चिकपी-10216 (Pusa Chickpea-10216) के.पी.जी. 54 (K.P.G 54) उदय
पूसा 209 (Pusa 209) एस.जी. 2 (S.G. 2)
पूसा 212 (Pusa 212) गुजरात चना 4 (Gujarat Chana 4)
पूसा 240 (Pusa 240) सी.एस.जे.के. 21 (C.S.J.K 21) आनंद
पूसा 244 (Pusa 244) सी.एस.जे.के. 6 (C.S.J.K 6) असर
पूसा 408 (Pusa 408) जी.एन.जी 1292 (G.N.G 1292)
पूसा 413 (Pusa 413) जी.एन.जी 663 (G.N.G 663) वरदान
पूसा 417 (Pusa 417) आर.एस.जी 44 (R.S.G 44)
पूसा 261 (Pusa 261) आर.एस.जी 888 (R.S.G 888) अनुभव
पूसा 329 (Pusa 329) आर.एस.जी 963 (R.S.G 963) अनुभव
पूसा 391 (Pusa 391) करनाल चना 1 (Karnal Chana 1)
पूसा 1103 (Pusa 1103) के.जी 11 (K.G 11)
पूसा 5028 (Pusa 5028) बी.जी. 1053 (B.G 1053)
पूसा 3022 (Pusa 3022) आर.ए.यू 52 (R.A.U 52)
एम.एन.के 1 (M.N.K 1) आर.वी.के.जी 101 (R.V.K.G 101)
ए.के.जी 9303-12 (A.K.G 9303-12) आर.वी.के.जी 201 (R.V.K.G 201)
एच.के 4 (H.K 4) आर.वी.जी 202 (R.V.G 202)
फुले जी. 0027 (Phule G. 0027) आर.वी.जी 203 (R.V.G 203)
जी.एन.जी 1958 (G.N.G 1958) एल 555 (L 555)
जी.एन.जी 1969 (G.N.G 1969) डब्ल्यू.सी.जी.के. 2000-16 (W.C.G.K. 2000-16)
जी.एल.के. 28127 (G.L.K. 28127) बिरसा चना 3 (Birsa Chana 3)
एन.बी.ई.जी. 3 (N.B.E.G 3) बी.जी. 1084 (B.G 1084)
सी.एस.जे. 515 (C.S.J 515) जी.एन.जी 2144 (G.N.G 2144)
बी.डी.एन.जी.के. 798 (B.D.N.G.K 798) जी.एन.जी 2171 (G.N.G 2171)
जे.जी. 63 (J.G 63) जे.जी.के. 5 (J.G.K 5)
जे.जी 36 (J.G 36) जी.जे.जी. 0809 (G.J.G 0809)
जी.बी.एम 2 (G.B.M 2) एन.बी.ई.जी. 119 (N.B.E.G 119)
पन्त चना 5 (Pant Chana 5) बी.जी. 3043 (B.G 3043)
इंदिरा चना 1 (Indira Chana 1) फुले विक्रम (Phule Vikram)
एन.बी.ई.जी. 49 (N.B.E.G 49) एन.बी.ई.जी. 49 (N.B.E.G 49)
जी.एन.जी 2207 (G.N.G 2207) फुले जी. 0405 (Phule G. 0405)
बी.जी.डी. 111-1 (B.G.D. 111-1)

ऊपर के सारणी मे कुछ चना के किस्मों का नाम दिया गया है।

Chana ki kheti
चना की खेती

काबुली चना के किस्म (Kabuli Chana ki kisme)

पूसा 5023 (Pusa 5023) पूसा शक्तिमान पन्त काबुली चना 2 (Pant Kabuli Chana 2)
पूसा 2024 (Pusa 2024) पन्त काबुली चना 1 (Pant Kabuli Chana 1)
पूसा शुभ्रा (pusa shubhra) बी.जी.डी. 128 जे.जी.के 1 (J.G.K 1)
पूसा 1108 (Pusa 1108) जे.जी.के 3 (J.G.K 3)
पूसा 1105 (Pusa 1105) सी. 550 (C. 550)
पूसा 1088 (Pusa 1088) एच.के. 25 (H.K 25)
पूसा 1053 (Pusa 1053) एच.के. 94-134 (H.K 94-134)
पूसा 1003 (Pusa 1003) आई.सी.सी.वी 2 (I.C.C.V 2) स्वेता
पूसा 267 (Pusa 267) काक 2 (Kak 2)

ऊपर के सारणी मे कुछ काबुली चना के किस्मों का नाम दिया गया है।

देशी चना और काबुली चना मे अंतर (Difference between Desi Chana and Kabuli Chana)

देशी चना काबुली चना
देशी चना का दाना छोटा, गहरे भूरे रंग का, खुरदुरा एवं कोणीय आकार का होता हैं।  काबुली चना का दाना सफेद या क्रीम रंग का, चिकना एवं उल्लू के सिर के आकार का होता हैं। 
इसके फूल गुलाबी रंग के आते हैं।
इसके फूल सफेद रंग के आते हैं।
इसके चने और शखाएं हरे बैगनी रंग मे होते हैं।
इसका तना हरा होता हैं।

चना की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for gram cultivation)

दोमट मिट्टी से लेकर काली चिकनी मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की भूमियों मे चने की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैं लेकिन अच्छी उपज पाने के लिए बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता हैं। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 7.5 उपयुक्त रहता हैं। चने की खेती के लिए भूमि का चुनाव करते समय किसानों को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि जिस भूमि मे नमी को संरक्षण करने की क्षमता हो तथा जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं।

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती हैं। चने की फसल की वृद्धि एवं विकाश के लिए 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती हैं।

Chana ki kheti
चना की खेती

Agriculture in hindi

चना की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for gram cultivation)

किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की तैयारी करते समय इस बात का ध्यान रखे की खेत मे पर्याप्त नमी हो। अगर खेत मे पर्याप्त नमी न हो तो पलेवा देकर खेत को तैयार करें। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इसके बाद हैरो से दो बार क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। चने की बुआई धान की कटाई के बाद खाली पङे खेतों मे जीरो-टिल सीड ड्रिल मशीन से की जा सकती हैं।

चने की बुआई का समय (Chana ki buai ka samay)

चने की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए जरूरी हैं इसकी बुआई समय पर की जाए। इसकी बुआई अक्टूबर-नवंबर के माह मे करनी चाहिए। अगर चने की पछेती बुआई की जा रही हैं तो इसकी बुआई दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए। 

1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए चना की बीज दर (Gram seed rate for sowing in 1 hectare)

चना के बीज की मात्रा बुआई का समय, बुआई की विधि, दानों का आकार एवं भार पर निर्भर करता हैं। सामान्यतः देशी चने के 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त होती हैं वहीं काबुली चने की एक हेक्टेयर मे बुआई के लिए 80 से 120 किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती हैं। अत्यंत मोटे दाने वाले चने की बीज दर 120 से 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के लिए उपयुक्त हैं। 

बीज की गहराई एवं दूरी (Seed depth and spacing)

देशी चना की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं काबुली चने की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर एवं पौधों से पौधों की बीच की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर रखना चाहिए। साथ ही इसकी बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखे कि इसकी बीजों की बुआई 5 से 8 सेंटीमीटर की गहराई पर हो। 

चना के बीज का बीजोपचार (Gram seed treatment)

चना की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है। थायरम + कार्बेन्डाजिम (1:1) के दो ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज मे मिलाकर बीजों को उपचारित करें। कीटनाशी एवं फफूंदनाशक से बीजों को उपचारित करने के बाद राइजोबियम एवं पी.एस.बी. (Phosphate Solubilizing Bacteria) से बीजोपचार करते हैं। राइजोबियम से उपचारित करने से चने की जङो मे ग्रंथियों की संख्या बढ़ती हैं और पैदावार मे वृद्धि होती हैं।

Chana ki kheti
Chana ki kheti
चने की बुआई की विधि (Chana ki buai ki vidhi)

चना की बुआई के लिए सीड ड्रिल मशीन का प्रयोग करें। इस मशीन से बुआई करने पर एक निश्चित गहराई पर बीज बोने से बीज का अच्छा जमाव होता है तथा इसके साथ ही समय की बचत भी होती है। कतारों में फसल बोने की वजह से सिंचाई, निराई-गुराई, कटाई आदि का कार्य किसान आसानी से कर पाते है। एक निश्चित अंतराल पर फसल की बुआई होने से फसल की पैदावार भी अच्छी होती है। चना से अच्छा उत्पादन लेने के लिए कतार मे ही बुआई करनी चाहिए।

यह भी पढे.. गेहूं की खेती कैसे करें, जानियें बुआई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी

चने की फसल मे सिंचाई (Chana ki sichai kab kare)

चने मे सामान्यतः दो सिंचाई की आवश्यकता होती है लेकिन अगर बारिश हो जाए तो दूसरी सिंचाई नही करनी चाहिए वरना पौधों की ज्यादा बढ़वार होने से उपज कम हो जाती हैं। सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की अधिक या गहरी सिंचाई न करें।

पहली सिंचाई बुआई के 40 से 45 दिन बाद
दूसरी सिंचाई फली बनने की अवस्था मे.
चना की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (weed control in gram crop)

चना की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण चना की खेती (Chana ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए बुआई के 25-30 एवं 45-50 दिन के बाद खुरपी की मदद से या मशीन द्वारा निदाई एवं गुङाई करें।

Chana ki kheti
चना मे दाने आने के समय का फोटो

farming in hindi

चना की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests in gram crop)

चना की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट चेपा/माहू(एपीड) एवं चने की इल्ली आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा चना की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है चना की फसल मे प्रमुख्य रोग उकठा रोग, तना विगलन, गेरुआ रोग एवं जङ सङन आदि जैसे रोग चना की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।

चना की फसल की कटाई एवं दौनी (Harvesting of gram crop)

जब चना की फसल पककर तैयार हो जाती हैं तो इसके पत्ते सुखकर गिरने लगते हैं तथा चना के तने और फलियां हल्के भूरे रंग के हो जाये तो पता चलता है कि चना की फसल काटने योग्य हो गया है। जब फसल काटने योग्य हो जाये तो कटाई कर ले और इसके बाद फसल को धूप मे सुखा ले। फसल के पूरी तरह से सुख जाने के बाद इसकी गहाई (दौनी) थ्रेशर आदि यंत्र से करके दानों को अलग कर ले। गहाई हो जाने के बाद चने के बीज को अच्छी तरह से धूप मे सुखा लेते हैं जब दानों मे नमी की मात्रा 8 से 9 प्रतिशत या कम रह जाए तभी फसल को भंडारित करना चाहिए।

चना की उपज (Gram yield)

चना की उपज चना की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।

Chana ki kheti
अंकुरित चना
चना की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
चने की बुआई सीड कम फर्टिड्रिल मशीन से की जा सकती हैं?
जी, हाँ
चना की फसल कितने दिन की होती है?
चना की फसल 90 से 130 दिनों मे पककर तैयार हो जाती हैं।
चना रबी मौसम मे उगाए जाते हैं यानि की इसकी खेती ठंडी की मौसम मे की जाती हैं।
चना की उपज लगभग 15 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की है।
चना की बीजों की बुआई 5 से 8 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए।

तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी चना की खेती (Chana ki kheti) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।

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