हमारे देश मे लीची की खेती (Litchi ki kheti) बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब, त्रिपुरा, उत्तराखंड, ओङीशा और हिमाचल प्रदेश मे प्रमुख रूप से की जाती हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, चंपारण, बेगूसराय जिले और आसपास के क्षेत्रों में शाही लीची की भी खेती की जाती हैं क्योंकि इन जिलों की जलवायु शाही लीची की खेती के लिए अनुकूल हैं। बिहार के शाही लीची को जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (GI Tag) प्राप्त हैं बिहार में अब तक कुल 5 कृषि उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। जिसमें भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी धान, नवादा के मगही पान और मुजफ्फरपुर के शाही लीची और मिथिला मखाना को जीआई टैग में शामिल किया गया है।
चीन के बाद भारत विश्व में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। लीची उत्पादन मे चीन पहले स्थान पर आता हैं, लेकिन उत्पादकता की दृष्टि से भारत का सर्वोच्च स्थान हैं। बिहार लीची उत्पादन में अग्रणी राज्य है जिसके बाद पश्चिम बंगाल और असम का स्थान आता है।
लीची विटामिन सी, नियासिन और थायमीन का अच्छा स्त्रोत हैं लीची के ताजे फल मे 70 प्रतिशत भाग गुड्डे का होता हैं इसमें चीनी 10 से 15 प्रतिशत एवं 11 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती हैं। लीची जो की खाने मे काफी स्वादिष्ट होता हैं यह अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के कारण अपने देश मे ही नही बल्कि विदेशों मे भी खुब प्रचलित हैं। लीची की मांग विदेशों मे भी खूब रहती हैं। लीची को ‘फलों की रानी’ कहते हैं। लीची का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। लीची खांसी और गैस मे भी राहत देता हैं एवं यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाता हैं। लीची त्वचा को भी पोषण देता हैं और कील-मुहासों को कम करता हैं।
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लीची की किस्में (Litchi ki kisme)
अर्ली बेदाना (Early Bedana) | लेट बेदाना (Late Bedana) |
रोज सेन्टेड (Rose scented) | देहरादून (Dehradun) |
पूर्वी (Purbi) | कलकतिया (Kalkattia) |
चायना (China) | शाही (Shahi) |
कसबा (Kasba) | स्वर्ण रूपा (Swarna Roopa) |
मंदराजी (Mandraji) | इलाची (Elachi) |
बॉम्बई (Bombai) |
गुलाबी (Gulabi) |
लेट लार्ज रेड (Late Large Red) |
लीची की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for litchi cultivation)
वैसे तो लीची की खेती (Litchi ki kheti) विभिन्न प्रकार की मिट्टियों मे की जा सकती हैं लेकिन इसकी खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता हैं। लीची की खेती शुरू करने से पहले किसानों को मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए। जिस खेत मे लीची की खेती की जा रही हैं वहां जल निकाशी का उत्तम प्रबंध करना चाहिए। लीची की खेती के लिए आर्द्र जलवायु उपयुक्त होता हैं।
लीची की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for litchi cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी खेती के लिए खेत की जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लें। सामान्यतः लीची का बाग वर्गाकार पद्धति मे लगाया जाता हैं। लीची के पौध की रोपाई करने से पहले मई माह के प्रथम सप्ताह या द्वितीय सप्ताह मे 8 मीटर की दूरी पर 90 सेंटीमीटर व्यास तथा 90 सेंटीमीटर गहराई के गड्डे खोदकर दो सप्ताह के लिए खुले छोंङ दे। गड्डे के खुले छोङने से मिट्टी मे उपलब्ध हानिकारक फफूँद एवं कीट का नाश हो जाता है। जून माह के दूसरे सप्ताह मे गड्डे से निकाली गई मिट्टी मे आवश्यकता अनुसार कंपोस्ट आदि खाद मिलाकर गड्डे को भर दे।
लीची के पौध का रोपाई का समय (Planting time of litchi plant)
लीची के पौध की रोपाई सामान्यतः जुलाई-अगस्त के महीनों मे की जाती हैं।
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लीची की पौध की रोपाई (Transplantation of litchi plant)
लीची की पौध की रोपाई उचित दूरी पर ही करना चाहिए। इसकी पौध की रोपाई खोदे गए गड्डे मे ही करे। लीची के पौध लगाने के बाद पौध के जङ के पास अच्छे से मिट्टी भर दे। तथा शुरुआती दिनों मे पौधों को सुबह-शाम आवश्यकता के अनुसार पानी दें।
लीची की पौधों की सिंचाई (Litchi ki sichai kab kare)
नई रोपाई की गई पौधों की सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। सिंचाई तापमान तथा पर्यावरण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी के प्रकार, पेङ की उम्र तथा मौसम की स्थिति के अनुसार पङती हैं। ड्रिप सिंचाई को लीची मे सिंचाई करने के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं। ड्रिप के मध्यम से पौधों की जङो मे खाद एकसमान मात्रा मे चला जाता है जिससे खाद की भी बचत होती है और पौधों को एकसमान मात्रा मे खाद की पूर्ति होती है। अगर किसान लीची की खेती (Litchi ki kheti) मे ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल कर रहे है तो ऐसे मे सिंचाई एक दिन के अंतराल पर दिया जाता है।
लीची की वृक्षों की कटाई-छटाई (Pruning of litchi trees)
वैसे तो लीची के वृक्षों मे किसी भी तरह की कटाई-छँटाई की आवश्यकता नही होती हैं क्योंकि जब वृक्षों से लीची के फल तोङे जाते हैं तो तोङतें समय लीची के गुच्छे के साथ टहनी का भी कुछ भाग टूट जाता हैं जिससे वृक्षों की काट-छाँट अपने आप ही हो जाता हैं। लेकिन जब वृक्ष का कोई टहनी या डाली सुख जाए, कीटग्रस्त हो जाए, अवांछित डाली हो तो ऐसे मे उन टहनी या डाली का छटाई करते हैं।
लीची के बाग मे अतर्वर्ती फसलें (Intercropping in litchi orchard)
लीची के नये बाग में अंतर्वर्ती फसल जैसे की विभिन्न सब्जियों की खेती, दलहनी फसल, हल्दी एवं अदरक आदि की खेती की जा सकती हैं। लीची के बाग मे अंतर्वर्ती फसलों की खेती करने से अतिरिक्त लाभ होता हैं।
लीची की फलों की तूङाई (Litchi fruit harvesting)
लीची की फलों की तुङाई उस समय करनी चाहिए जब फल अच्छे से पक जाए एवं जब फल सख्त हो और फलों मे रंग आ जाए तो फलों की तुङाई करनी चाहिए। लीची के फलों को सही समय पर तुङाई करें. क्योंकि तुङाई के बाद यह फल बहुत जल्दी खराब होने लगता है एवं फल के ऊपर के छिलके का रंग भी भूरा पङने लगता हैं। लीची गैर क्लैमाकटरिक (Non climacteric) फल हैं जिसके कारण इस फल की तुङाई पकने के बाद ही करते हैं। लीची का पूर्ण स्वाद एवं पोषण पूरी तरह से पकने के बाद ही मिलता हैं।
लीची की उपज (Yield of litchi)
लीची की उपज लीची की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर पूर्ण विकसित पेङ से औसतन 60-100 किलोग्राम प्रति पेङ के हिसाब से प्रतिवर्ष लीची प्राप्त होता हैं। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर भी निर्भर करती है।
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लीची से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Litchi FAQs)
लीची का वानस्पतिक नाम क्या हैं? |
लीची का वानस्पतिक नाम लीची चाइनेनसिस (Litchi chinensis) हैं। |
लीची का कुल कौन सा है? |
यह सापिनडेसी (Sapindaceae) कुल का फल हैं। |
लीची का उत्पति स्थान कहाँ हैं? |
लीची का उत्पति स्थान चीन हैं। |
लीची का प्रवर्धन किसके द्वारा किया जाता हैं? |
लीची का प्रवर्धन एयर लेयरिंग (Air layering) या गूटी द्वारा किया जाता हैं। |
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र कहाँ स्थित हैं? |
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुजफ्फरपुर, बिहार मे स्थित हैं। |
लीची के सबसे कम फटने वाला प्रजाति कौन हैं? |
लीची के सबसे कम फटने वाला प्रजाति स्वर्ण रूपा (Swarna Roopa) हैं। |
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गूटी द्वारा तैयार लीची के पेङ 4 से 5 वर्षो के बाद फल देने लगता हैं। |
लीची वर्ष भर मे कितना बार फल देता हैं? |
लीची वर्ष भर मे एक बार फल देता हैं। |
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