कपास प्रमुख नगदी फसलों मे से एक हैं कपास की खेती (Kapas ki kheti) हमारे देश तक ही सीमित नही हैं बल्कि इसकी खेती पूरे विश्व के लगभग सभी देशों मे की जाती हैं। कपास रेशे वाली फसल हैं कपास रेशे के अलावा कपास का बीज खाद्य तेल का प्रमुख स्त्रोत हैं। कपास के बीज मे लगभग 15 से 25 प्रतिशत तक की तेल की मात्रा पाई जाती हैं। कपास की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों मे बङे पैमाने पर की जाती हैं क्योंकि इसकी बाजार मांग अच्छा होने से एवं अच्छी कीमत मिलने से किसान इसकी खेती बङे पैमाने पर करते हैं। यह किसानों के बीच सफेद सोना के रूप मे लोकप्रिये हैं। पूरे विश्व भर मे हमारा देश भारत सबसे बङे कपास उत्पादकों मे से एक हैं।
बहुत समय पहले से ही हमारे देश मे कपास की खेती (Cotton Farming) होती आ रही हैं पहले के समय मे देशी कपास की किस्मों की खेती की जाती थी। जिसकी पैदावार कम होने के कारण बाद मे किसानों ने कपास की हाइब्रिड किस्मों की खेती करने लगे जिससे पैदावार मे वृद्धि हुई। कपास की फसल की सबसे ज्यादा क्षति रस चूसने वाले एवं गूले भेदने वाले कीटों से होती हैं। हमारे देश मे कपास की खेती गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, उड़ीसा और तमिलनाडु आदि राज्यों मे की जाती हैं। गुजरात राज्य मे सबसे ज्यादा कपास उत्पादन होता है।
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बी.टी कपास क्या हैं (Bt Cotton kya hain)
बी.टी कपास (Bt cotton) एक आनुवांशिक संशोधित कपास है। बी.टी कपास जीएम (Genetically Modified) फसल है जिसकी खेती करने की अनुमति है। बी.टी कपास की खेती 2002 से प्रचलन मे आई। बी.टी से तात्पर्य हैं बैसिलस थुरिंजिनिसिस (Bacillus Thuringiensis). बैसिलस थुरिंजिनिसिस एक जीवाणु हैं जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता हैं यह प्रोटीन कीटों के लिए हानिकारक होता हैं। कपास मे लगने वाली सभी प्रकार की सुंडियों मे यह प्राकृतिक बीमारी पैदा करके उन्हे मार देता हैं।
देशी कपास की किस्में (Desi Kapas ki kisme)
एच.डी – 107 (H.D – 107) | आर.जी – 8 (R.G – 8) |
एच.डी – 123 (H.D – 123) | आर.जी – 18 (R.G – 18) |
एच.डी – 324 (H.D – 324) | राज.डी.एच. – 9 (Raj.D.H. – 9) |
एच.डी – 432 (H.D – 432) | आर.जी – 542 (R.G – 542) |
पी.ए.- 255 (P.A- 255) |
अमेरीकन कपास की किस्में (American Kapas ki kisme)
एच. एस -6 (H.S-6) | एच-1117 (H-1117) |
एच-1098 (H-1098) | एच-1226 (H-1226) |
एच-1300 (H-1300) | एच-1236 (H-1236) |
वागङ कल्याण (2001) |
बी.टी कपास की किस्में (Bt cotton ki kisme)
राशी – 659 (Rashi – 659) | ब्रम्हा (Brahma) |
जादू (Jadu) | मल्लिका (Mallika) |
मनीमेकर (Moneymaker) | जया (Jaya) |
जेकाट (Jekaat) |
कपास की खेती कैसें करें (Kapas ki Kheti kaise kare)
कपास की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Kapas ki kheti ke liye mitti or Climate)
कपास की खेती (kapas kheti) के लिए काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है इसकी खेती दोमट/चिकनी मिट्टी मे भी सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। काली मिट्टी में मैग्नेशियम, चूना, लौह तत्व तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है। हमारे देश मे काली मिट्टी मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, और मध्य प्रदेश राज्यों में पाई जाती है।
कपास की खेती के लिए विभिन्न अवस्थाओ पर भिन्न-भिन्न तापमान की आवश्यकता होती है। कपास के बीज के अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेन्टीग्रेड का होना उचित माना जाता हैं और इसकी बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान चाहिए साथ ही इसकी फसल को उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेन्टीग्रेड का तापमान चाहिए। कपास की फसल मे फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड तथा रातें ठंडी होनी चाहिए।
कपास की खेती के लिए भूमि की तैयारी (land preparation for cotton cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल यानि की मोल्ड बोर्ड हल (Mould Board Plough) या डिस्क हैरो से करनी चाहिए। इसके बाद हैरो द्वारा क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए।
कपास की बुआई का समय (Kapas ki buai ka samay)
कपास की बुआई का समय 15 अप्रैल से जून के पहले सप्ताह तक की हैं परंतु मई का पूरा महीना कपास की बुआई के लिए अच्छा माना जाता हैं। वहीं बात करे बी.टी. कपास की बुआई के सही समय का तो इसकी बुआई अप्रैल के तीसरे सप्ताह से लेकर मई महीना के अंत तक इसकी बुआई की जा सकती हैं।
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए कपास की बीज की मात्रा (Cotton seed quantity for sowing in 1 hectare)
कपास की संकर तथा बी.टी. किस्मों की खेती के लिए 4 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। वहीं अगर किसान कपास की देशी किस्मों की बुआई कर रहे हैं तो 12 से 16 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
बीज की गहराई एवं दूरी (Seed depth and spacing)
- कपास की अमेरीकन किस्मों की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
- देशी किस्मों की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
- बी.टी. कपास की बुआई बीज रोपण डिबलिंग विधि से करने पर कतार से कतार की दूरी 90 से 120 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 60 से 90 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
✅ कपास के बीजों को लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई मे बोनी चाहिए।
कपास की बुआई (Kapas ki buai)
कपास की विभिन्न किस्मों की बुआई कॉटन प्लांटर (Cotton Planter) मशीन से भी की जा सकती हैं।
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कपास की फसल मे सिंचाई (Kapas ki sichai kab kare)
कपास की फसल मे सामान्यतः 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई अंकुरण के बाद 25 से 30 दिन मे करते हैं और बाद की सिंचाई 20 से 25 दिन के अंतराल पर करते हैं। इसकी खेती मे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कपास की फसल (kapas ki fasal) मे फल और फूल आते समय सिचाई का अभाव न हो क्योंकि इससे फसल पर बुरा प्रभाव पङता हैं। किसी भी फसल मे सिंचाई की आवश्यकता होने पर ही सिंचाई करना चाहिए।
कपास की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in cotton crop)
कपास की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण कपास की खेती (Kapas ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए पहली निराई-गुङाई पहली सिंचाई के बाद करें।
कपास की खरपतवार की नियंत्रण के लिए कई खरपतवारनाशी दवाये बजार मे उपलब्ध हैं इन खरपतवारनाशी दवाओ का इस्तेमाल करके भी खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं। कपास की खेती से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए सही समय पर खरपतवार नियंत्रण करना काफी आवश्यक हो जाता हैं।
कपास की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of cotton crop)
कपास की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट कपास का गुलाबी कीट, अमेरिकन कपास की सुंडी, चित्तीदार कपास की सुंडी, तंबाकू की सुंडी, कपास की सफेद मक्खी, कपास की लाल मृत्कुण, मिली बग, हरा फुदका, माहू/चेंपा और थ्रिप्स आदि कीट लगते है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के आलवा कपास की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है कपास की फसल मे प्रमुख्य रोग कपास का कोणीय धब्बा एवं जीवाणु झुलसा रोग, मायरोथीसियम पत्ती धब्बा रोग, आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग, पौध अंगमारी रोग, कपास का नया उक्टा (न्यू विल्ट), कपास का रतुला एवं तंबाकू स्ट्रीक वायरस आदि जैसे रोग कपास की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
कपास की चुनाई (Kapas ki chunai)
कपास की चुनाई समय पर करनी चाहिए क्योंकि अगर समय पर कपास की चुनाई नही की गई तो कपास की भूमि पर गिरकर खराब होने की आशंका रहती हैं। कपास की चुनाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की कपास की चुनाई ओस सूखने के बाद ही करनी चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखे की अविकसित, अधखिले या गीले घेटों की चुनाई नही करनी चाहिए। कपास की चुनाई करते समय सुखी पत्तियां, डंठल एवं मिट्टी आदि न आए इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
कपास की उपज (Kapas ki yield)
कपास की उपज कपास की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर देशी उन्नत किस्मों से 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, संकर किस्मों से 13 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा बी.टी. कपास की किस्मों से 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की औसत उपज प्राप्त होती हैं। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर भी निर्भर करती है।
कपास की भंडारण (Cotton Storage)
कपास की भंडारण करते समय कुछ बातों को अगर ध्यान मे रखा जाए तो भंडारण मे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं। कपास के चुनाई हो जाने के बाद कपास को धूप मे अच्छे से सूखा लेना चाहिए क्योंकि कपास मे अधिक नमी रहने से रुई तथा बीज दोनों की गुणवत्ता मे कमी आती हैं साथ ही कपास मे नमी होने पर कपास पीला पङ जाएगा एवं फूफूंद भी लग सकता हैं इसलिए कपास को सुखाकर ही भंडारित करें।
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कपास से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Cotton FAQs)
कपास का वानस्पतिक नाम क्या हैं? |
कपास का वानस्पतिक नाम गॉसिपियम स्पीशीज (Gossypium species) हैं। |
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कपास मालवेसी ((Malvaceae) कुल का सदस्य है। |
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जी हाँ |
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गुजरात कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। |
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कपास को इंग्लिश मे कॉटन (Cotton) बोलते हैं। |
कपास में पहली बार कली का निकलना क्या कहलाता हैं? |
स्कवायर (square) |
कपास से कितनी प्रतिशत रुई की प्राप्ति होती हैं? |
लगभग 33 प्रतिशत |
कपास मे रुई और बिनौला का कितना अनुपात होता हैं? |
1:3 |
कपास का रेशा किसका बना होता हैं? |
कपास का रेशा सेल्यूलोज (cellulose) का बना होता हैं। |
कपास का रेशा किस उत्तक का बना होता हैं? |
कपास का रेशा एपिडर्मल ऊतक (Epidermal tissue) का बना होता हैं। |
कपास मे रेशे की परिपक्वता मापी जाती हैं? |
कपास मे रेशे की परिपक्वता एरिलोमीटर (arilometer) से मापी जाती हैं। |
कपास मे रेशे की महीनपन किससे नापते हैं? |
कपास मे रेशे की महीनपन माइक्रोनायर (micronaire) द्वारा नापी जाती हैं। |
रुई की मात्रा किससे मापते है? |
गाठ (bales) |
कपास के बिंनोले में तेल प्रतिशत मात्रा कितनी होती है? |
15-25 प्रतिशत |
कपास के पौधों से गूलर तोड़ने को क्या कहते हैं? |
कपास के पौधों से गूलर तोड़ने को ओटाई (ginning) कहते है। |
कपास की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है? |
कपास की खेती के लिए काली मिट्टी (Black soil) सबसे उपयुक्त होती है। |
बी.टी कपास की पहली प्रजाति कौन सी है? |
बी.टी कपास की पहली प्रजाति बॉलगार्ड (Bollgard) है। |
कपास के फल को क्या कहते हैं? |
कपास के फल को बॉल (bolls) कहते हैं। |
कपास की प्रथम संकर प्रजाति कौन हैं? |
कपास की प्रथम संकर प्रजाति हाइब्रिड -4 (Hybrid-4) हैं जिसे 1970 में वैज्ञानिक चंद्रकांत टी. पटेल द्वारा विकसित किया गया। |
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Kapas ki kheti ke bare me yha se jankari read karke achha lga
Very nice sir ji
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