मसूर दलहनी फसलों मे सबसे पुराना एवं महत्वपूर्ण फसल हैं इसकी खेती रबी के मौसम मे की जाती हैं यह रबी मौसम की प्रमुख्य दलहनी फसल हैं। मसूर मे लगभग 25 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता हैं साथ ही इसमे वसा, कार्बोहाइड्रेट, रेशा एवं खनिज लवण भी पाया जाता हैं जिसके कारण इसका सेवन करना सेहत के लिए फायदेमंद होता हैं। मसूर के दाल के सेवन करने से कई तरह की बीमारियाँ नही होती हैं। मसूर की दाल जिसे लाल दाल के नाम से भी जाना जाता है बाजारों मे मसूर छिलके सहित या बिना छिलके वाली पूरी या विभाजित दाल के रूप मे बेची जाती हैं। मसूर का उपयोग दाल के अलावा नमकीन, मिठाइयां एवं दूसरे व्यंजन बनाने मे किया जाता हैं। शाकाहारी लोगों के लिए भोजन मे मसूर का दाल प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत मानी जाती हैं।
मसूर की खेती (Masoor ki kheti) मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसग़ढ़, झारखंड आदि राज्यों मे की जाती हैं। भारत विश्व में दालों का बड़ा उत्पादक है। मसूर उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है एवं क्षेत्रफल मे पहला स्थान हैं। मसूर की खेती समान्यतः खरीफ की फसल की कटाई के बाद की जाती हैं इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त होती हैं।
आमतौर पर हमारे घरों मे मसूर दाल का उपयोग लगभग प्रतिदिन या एक दो दिन बीच करके होता ही हैं। यह एक दलहनी फसल है। जिस वजह से इसकी जड़े गांठ वाली होती है, इन जड़ो में सूक्ष्म जीवाणु उपस्थित होते है, जो वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) कर मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति मे सुधार होती हैं। मसूर का वानस्पतिक नाम लेन्स एस्क्युलेन्टा (Lens esculenta) अथवा लेन्स कुलीनेरिस (Lens culinaris) हैं इसका परिवार लेग्युमिनेसी (Laguminoceae) हैं। इसका उत्पत्ति जनक इजिप्त सेंट्रल और दक्षिणी यूरोप (Egypt Central and Southern Europe) हैं।
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मसूर के किस्में (Masoor ki kisme)
पी.डी.एल. 1 (P.D.L -1) पूसा अवंतिका | एच.यू.एल. 57 (H.U.L 57) |
पी.एस.एल. 9 (P.S.L- 9) पूसा युवराज | डी.पी.एल 62 (D.P.L 62) |
पंत मसूर 9 (Pant Masoor 9) | आई. पी. एल. 316 (I.P.L. 316) |
जे.एल 3 (J.L 3) | आर.वी.एल. 30 (R.V.L 30) |
जे.एल 1 (J.L 1) | आर.वी.एल. 31 (R.V.L 31) |
वी. एल. मसूर 4 (V. L. Masoor 4) | पी.एल 8 (P.L 8) |
मल्लिका (Mallika) – के. 75 | एल.एल 218 (L.L 218) |
एल. 4594 (L. 4594) | एल. 4717 (L. 4717) |
पंत एल. 209 (Pant L. 209) | एल. 4727 (L. 4727) |
आई. पी. एल. 81 (I.P.L. 81) – नूरी | एल. 4729 (L. 4729) |
एल. 4076 (L. 4076) | एल. 4117 (L. 4117) |
पंत 406 (Pant 406) | के.एल. एस. 218 (K.L.S. 218) |
बी.आर 25 (B.R 25) | डी.पी.एल. 62 |
पंत के. 639 (Pant K. 639) | बी.एल 126 (B.L 126) |
आई.पी.एल. 406 (I.P.L. 406) | बी.एल 507 (B.L 507) |
हरियाणा मसूर 1 (Haryana Masoor 1) | बी.एल 129 (B.L 129) |
डब्लू.बी.एल. 77 (W.B.L. 77) | पंत मसूर 6 (Pant Masoor 6) |
पूसा मसूर 5 (Pusa Masoor 5) | पंत मसूर 7 (Pant Masoor 7) |
शेखर मसूर 2 (Shekhar Masoor 2) | पंत मसूर 8 (Pant Masoor 8) |
शेखर मसूर 3 (Shekhar Masoor 3) | एल.एल. 931 (L.L 931) |
आई.पी.एल. 526 (I.P.L. 526) | आई.पी.एल. 220 (I.P.L. 220) |
ऊपर के सारणी मे कुछ मसूर के किस्मों का नाम दिया गया है।
मसूर की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for lentil cultivation)
मसूर की खेती बलुई दोमट मिट्टी से लेकर काली मिट्टी तक मे की जा सकती है। बलुई दोमट से बलुई चिकनी मृदा की संरचना वाली मिट्टियाँ मसूर की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 5.6 से 8.5 के बीच होना चाहिए। मसूर की खेती के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल जमाव न होता हो।
मसूर रबी मौसम की फसल हैं इसलिए इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती हैं लेकिन ज्यादा ठंडा या पाला पङने से इसकी उपज पर प्रतिकूल असर पङता हैं। मसूर की खेती के लिए सर्वोत्तम तापमान (Optimum temperature) 18 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच का होना इसकी खेती के लिए अच्छा माना जाता हैं।
मसूर की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for lentil cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल यानि की मोल्ड बोर्ड हल (Mould Board Plough) या डिस्क हैरो से करनी चाहिए। इसके बाद हैरो से दो बार क्रॉस जुताई करके करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए।
मसूर की बुआई का समय (Masoor ki buai ka samay)
सामान्यतः मसूर की बुआई 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक की जाती हैं।
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए मसूर की बीज की मात्रा (Lentil seed quantity for sowing in 1 hectare)
मसूर के छोटे दानों वाली किस्मों के लिए 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त होती हैं वहीं बङे दानों वाली मसूर के किस्मों के लिए 50 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त होती हैं।
बीज की गहराई एवं दूरी (Seed depth and spacing)
मसूर की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौधों से पौधों की बीच की दूरी लगभग 5 से 7 सेंटीमीटर रखना चाहिए। साथ ही इसकी बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखे कि इसकी बीजों की बुआई 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पर हो।
मसूर के बीज का बीजोपचार (lentil seed treatment)
मसूर की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है तथा अंकुरण भी अच्छा होता है। बीजों को उपचारित करने के लिए बुआई से पहले थिरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) से 3 ग्राम अथवा थीरम 3.0 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए।
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मसूर की बुआई की विधि (Method of sowing lentils)
मसूर कि बुआई देशी हल, सीड ड्रिल मशीन एवं उतेरा विधि से की जाती हैं। मसूर की बुआई उतेरा विधि से करने पर धान की कटाई से पूर्व ही धान की खङी फसल मे अंतिम सिंचाई के बाद ही बीजों की छिटकर बुआई करते हैं। इस विधि से बुआई करने पर खेत तैयार करने की आवश्यकता नही होती हैं लेकिन इससे अच्छी उपज लेने के लिए सामान्यतः बुआई की अपेक्षा 1.5 गुना अधिक बीज का प्रयोग करना चाहिए। गीली मिट्टी वाले क्षेत्रों मे जहां हल चलना संभव नही होता हैं वहाँ बीज को छीटकर बुआई कर सकते हैं। मसूर की बुआई हल के पीछे पंक्तियों मे ही करना चाहिए।
सीड ड्रिल मशीन से भी मसूर की बुआई की जाती हैं इस मशीन से बुआई करने पर एक निश्चित गहराई पर बीज बोने से बीज का अच्छा जमाव होता है तथा इसके साथ ही समय की बचत भी होती है। कतारों में फसल बोने की वजह से सिंचाई, निराई-गुराई, कटाई आदि का कार्य किसान आसानी से कर पाते है। एक निश्चित अंतराल पर फसल की बुआई होने से फसल की पैदावार भी अच्छी होती है। मसूर से अच्छा उत्पादन लेने के लिए कतार मे ही बुआई करनी चाहिए।
मसूर की फसल की सिंचाई (Masoor ki sichai kab kare)
मसूर की पहली सिंचाई फूल आने से पहले करें एवं दूसरी सिंचाई बुआई के 45 से 60 दिनों के बाद एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। अगर मसूर की सिंचाई पलेवा लगाकर की गई हो तो मिट्टी मे नमी बनी रहती हैं जिससे बीजों का अंकुरण तो अच्छा होता ही हैं साथ ही फसलों की सिचाई की आवश्यकता भी नही पङती हैं। आवश्यकता पङने पर ही मसूर की सिंचाई करें।
मसूर की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in lentil crop)
मसूर की फसल मे मुख्य रूप से बथुआ एवं हिरखुरी नामक खरपतवार उगते हैं खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए बुआई के 25 से 30 दिन बाद निराई करना चाहिए। अगर दूसरी निराई की आवश्यकता हो तो बुआई के 40 से 45 दिनों के बाद निराई करनी चाहिए।
मसूर की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of lentil crop)
मसूर की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट चेपा/माहू(एपीड) एवं फली भेदक आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा मसूर की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है मसूर की फसल मे प्रमुख्य रोग उकठा रोग, पाद गलन (कालर राट) एवं जङ सङन आदि जैसे रोग मसूर की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
मसूर की फसल की कटाई एवं दौनी (Lentil harvesting)
जब मसूर की फसल पककर पीली होने लगे तब इसकी कटाई करनी चाहिए। फसल की कटाई हो जाने के बाद फसल की बंडल (बोझा) बनाकर खलिहान मे ले आए। फिर खलिहान मे अच्छे से फसल को 3 से 4 दिन धूप मे सूखा ले। फसल के पूरी तरह से सुख जाने के बाद इसकी गहाई (दौनी) थ्रेशर आदि यंत्र से कर ले। भंडारण करते समय इस बात का ध्यान रखे कि मसूर को अधिक नमी से बचाना हैं। भंडारण के समय दानों मे नमी 10 प्रतिशत से अधिक नही होना चाहिए।
मसूर की उपज (lentil Yield)
मसूर की उपज मसूर की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
मसूर की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
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मसूर की बुआई का सही समय 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक की हैं। |
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मसूर की उपज लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की है। |
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मसूर की बीजों की बुआई 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए। |
मसूर की फसल कितने दिन की होती है? |
मसूर की फसल 100 से 130 दिनों मे पककर तैयार हो जाती हैं। |
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मसूर रबी मौसम मे उगाए जाते हैं यानि की इसकी खेती ठंडी की मौसम मे की जाती हैं। |
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