दिन प्रतिदिन खेती की लागत मे वृद्धि हो रही है जिससे किसानों की आय पर प्रभाव पर रहा है। इसलिए किसान अब जैविक खेती या ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। क्योंकि खेती का यही एकमात्र टिकाऊ और सस्ता उपाय हैं। इससे खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहती है साथ ही यह महंगे रासायनिक उर्वरकों, खरपतवारनाशी और कीटनाशक से छुटकारा दिलाता है।
खेती मे कृषि रसायनों का अंधाधुन उपयोग करने के कारण जीवान्श यानि की जैविक कार्बन की कमी होती जा रही हैं। खेती का रसायनों पर आधारित होने से खेती लागातर महंगी होती जा रही है एवं इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पङ रहा है जिससे कि हमारा जल विषाक्त एवं वातावरण प्रदूषित हो रहा हैं।
जैविक खेती कृषि की वह पद्धति है जिसमें कि कार्बनिक खाद, वानस्पतिक अवशिष्ट, जैव उर्वरक, जानवरों के अवशिष्ट आदि का प्रयोग करके खेती करते हैं। इसमे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, बीजामृत, संजीवक, पंचगव्य, नीमास्त्र एवं जीवामृत आदि के प्रयोग से खेती करते हैं। आज के इस आर्टिकल मे जीवामृत (Jeevamrit) बनाने की विधि और फसलों मे इसके प्रयोग एवं फायदें के बारे मे जानकारी दी गई है। जीवामृत लाभदायक सूक्ष्म जीवों का भण्डार हैं, इसमे लाभदायक सूक्ष्म जीव एजोस्पाइरीन्लम, पी.एस.एम, स्यूडोमोनास, ट्रसइकोडमर्गा, यीस्ट एवं मोल्ड आदि पाए जाते हैं। जीवामृत पौधों के लिए आवश्यक तत्व प्रदान करने मे अहम भूमिका निभाती है यह मिट्टी मे प्राकृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एक उत्प्रेरक एजेंट हैं। जीवामृत को बहुत ही आसानी से आवश्यकता अनुसार बनाया जा सकता है तो आइये जानते है जीवामृत बनाने की विधि एवं इसके फायदे के बारे मे।
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जीवामृत बनाने की विधि (Jivamrit Banane ka Tarika)
जीवामृत (Jivamrit Banane ka Tarika) को आसानी से कोई भी बना सकता है इसे बनाने के लिए कुछ सामग्री की आवश्यकता होती है तो कुछ सावधानियाँ बरतने की।
जीवामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री
सामग्री | मात्रा |
देशी गाय का गोबर | 10 किलोग्राम |
देशी गाय का गौमूत्र | 5-10 लीटर |
पानी | 200 लीटर |
गुङ | 1 किलोग्राम |
बेसन या किसी भी दलहन का आटा | 1 किलोग्राम |
मिट्टी (खेत की मेढ की मिट्टी या पेङ के नीचे की मिट्टी) | 50 ग्राम (1 मुट्ठी) |
जीवामृत कैसें बनाएं (jivamrit kaise banta hai)
स्टेप #1
सबसे पहले एक ड्रम/सिमेन्ट की बनी हौद मे 200 लीटर पानी ले फिर उसमे 5-10 लीटर गौमूत्र मिलाएं। मिश्रण मे 10 किलोग्राम गोबर, 1 किलोग्राम गुंङ, 1 किलोग्राम बेसन और 50 ग्राम (1 मुट्ठी) मिट्टी को मिलने के बाद मिश्रण को अच्छी तरह से मिला ले। लकङी के एक डंडे की मदद से।
स्टेप #2
इस घोल को दो से तीन दिनों तक सङने के लिए छाया मे रखना हैं प्रतिदिन इस घोल को दो बार सुबह-शाम घङी की सुई की दिशा मे लकङी के डंडे से दो मिनट तक घोलना हैं। घोलने के बाद जीवामृत को जुट की बोरी से ढक देना हैं। इसे बारिश का पानी या प्रकाश से बचाएं, तीन से चार दिन मे जीवामृत तैयार हो जाता हैं जिसे एक सप्ताह तक प्रयोग कर लेना हैं।
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सावधानियाँ
- देशी गाय के गोबर का इस्तेमाल करें, गोबर जितना ताजा होगा उतना ही अच्छा होगा। गोबर 7 दिनों तक प्रभावशाली होता हैं। यदि आपके पास बैल हैं तो आधा गोबर बैल का मिला सकते हैं लेकिन इस बात का ध्यान रखे कि अकेले बैल का गोबर का इस्तेमाल ना करें।
- गोंमूत्र जितना पुराना हो उतना अच्छा (भैस और जर्सी, होल्स्टीन का मूत्र वर्जित है।)
- पुराना गुङ सबसे अच्छा होता हैं यदि गुङ उपलब्ध न हो तो 1 लीटर गन्ने का रस या 2 किलोग्राम गन्ने के छोटे-छोटे टूकङे काटकर डाल सकते हैं। या तो फिर 400 ग्राम पक्के फलों के गुड्डे का भी उपयोग किया जा सकता हैं।
- सोयाबीन, मूंगफली अथवा अन्य ज्यादा तेल वाली दलहनों के बीजों से तैयार किए गए बेसन का उपयोग बिल्कुल ना करें।
- खेत की मेढ की मिट्टी या पेङ के नीचे की मिट्टी जहाँ किसी भी प्रकार के रासायनिक अथवा कृत्रिम कीटनाशक एवं खरपतवारनाशी का उपयोग नहीं किया गया हो उस मिट्टी का चुनाव करना चाहिए क्योंकि इसमे विभिन्न प्रकार के उपयोगी जीवाणु मौजूद होते हैं।
जीवामृत का उपयोग कैसे करें
जीवामृत (Jeevamrit) का प्रयोग सिंचाई के पानी के साथ, सीधा भूमि की सतह पर दो पौधों के बीच एवं खङी फसल पर छिङकाव करके किया जाता हैं। जीवामृत का महीने मे एक या दो बार उपलब्धता के अनुसार 200 लीटर प्रति एकङ के हिसाब से सिंचाई के पानी के साथ किया जा सकता हैं। बगीचों मे फलों के पेङो के पास 12 बजे दोपहर मे जब छायां पङती हैं, उस छायां के पास प्रति पेङ 2 से 5 लीटर जीवामृत भूमि पर महीने मे एक या दो बार गोलाकार डाला जा सकता हैं। जीवामृत का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखे की भूमि मे नमी हो।
खङी फसलों पर जीवामृत का पहला छिङकाव बीज बुआई के 21 दिन बाद प्रति एकङ 100 लीटर पानी और 5 लीटर जीवामृत मिलाकर छिङकाव करें। एवं दूसरा छिङकाव पहले छिङकाव के 21 दिन बाद प्रति एकङ 200 लीटर पानी और 20 लीटर जीवामृत को मिलाकर छिङकाव करे। साथ ही तीसरा छिङकाव दूसरे छिङकाव के 21 दिन बाद प्रति एकङ 200 लीटर पानी मे 20 लीटर जीवामृत मिलकर छिङकाव करें।
जीवामृत के फायदे
जीवामृत (Jeevamrit) खेत मे उपलब्ध जैव अवशेष के विघटन हेतु एक प्रभावी जैव नियामक है यह पौधों को मुख्य तथा सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ-साथ कीट रोग निवारण मे भी सहायक हैं। इसके प्रयोग से भूमि की उर्वरता एवं फसल उत्पाद मे वृद्धि होती हैं। जीवामृत लाभदायक सूक्ष्म जीवों का भण्डार हैं, इसमे लाभदायक सूक्ष्म जीव एजोस्पाइरीन्लम, पी.एस.एम, स्यूडोमोनास, ट्रसइकोडमर्गा, यीस्ट एवं मोल्ड आदि पाए जाते हैं। जीवामृत पौधों के लिए आवश्यक तत्व प्रदान करने मे अहम भूमिका निभाती है।
जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत मे डाला जाता है तो भूमि मे जीवाणुओ की संख्या अविश्वसनीय बढ़ जाती है और भूमि की रासायनिक एवं जैविक गुणों मे वृद्धि होती है। जीवामृत के उपयोग से मिट्टी स्वस्थ रहता है और फसल भी उतनी ही बेहतर होती हैं इससे किसानों के मित्र कहे जाने वाले केचुओ की संख्या भी बढ़ती हैं।
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