पपीता की खेती (Papita ki Kheti) हमारे देश मे प्राचीन काल से ही होते आ रहा हैं पपीते की पूरे वर्ष भर मांग बाजार मे देखने को मिलता हैं। बाजार की अच्छी मांग को देखते हुए अब पपीते की व्यवसायिक खेती की जा रही हैं। व्यवसायिक खेती तो हो ही रही हैं साथ की पपीते के पौधों को किचन गार्डनिंग मे भी लगाकर इसके पौधे से फल प्राप्त किए जा रहे हैं। पपीते की खेती हमारे देश के लगभग सभी भागों मे की जाती हैं। व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम एवं उङीसा आदि राज्यों मे की जाती हैं। पपीते के पौधे एक साल से भी कम समय मे फल देने लगता हैं इसकी बागवानी आसानी से की जा सकती हैं। पपीता फल को कच्चे एवं पके दोनों रूपों मे लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता हैं। सामान्य तौर पर पपीते के पके फल का उपयोग सीधे खाने के लिए होता हैं एवं कच्चे फल की सब्जी पाचन मे सहायक होती हैं।
हमारे देश भारत मे पपीते की खेती ज्यादातर फल उत्पादन एवं पपेन उत्पादन के लिए किया जाता हैं। पपीता के कच्चे फलों से दूध निकलता हैं इस दूध को सूखा कर पपेन बनाया जाता हैं। पपेन प्रोटिओलाइटिक इंजाइम होता हैं। पपेन का इस्तेमाल औषधि बनाने, माँस गलाने, चिवंगम बनाने एवं चमङा उधोग मे उपयोग होता हैं। पपीते से कई तरह के उत्पाद बनाये जाते हैं जैसे कि पपीते के जैम, सिरप, मुरब्बा, कैंडी, बर्फी, जेली, आचार एवं रायता आदि। पपीता का फल कार्बोहाइड्रेट, खनिज जैसे- कैल्शियम, फॉसफोरस, आयरन एवं विटामिन जैसे- कैरोटीन, थायमिन, रायबोफ्लेविन एवं एस्कॉर्बिक अम्ल का अच्छा स्त्रोत हैं।
पपीता का वानस्पतिक नाम केरिका पपाया हैं यह कैरिकेसी परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं। इसका उत्पति स्थान ऊष्ण अमेरिका (मेक्सिको) हैं पपीता का खाने योग्य भाग मध्यफलभित्ति हैं। पपीता बहुत की पौष्टिक एवं गुणकारी फल हैं इसका सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता हैं।
आज के इस लेख मे पपीता की रोपाई से लेकर कताई तक की पूरी जानकारी (Papita ki kheti ki jankari) देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी पपीता की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको पपीता की खेती (Papaya Farming) से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।
Page Contents
पपीता के किस्म (Papita ki kism)
कूर्ग हनी ड्यू (Coorg Honey Dew) | पूसा जायन्ट (Pusa Giant) |
पूसा ड्वार्फ (Pusa Dwarf) | पूसा मैजेस्टी (Pusa Majesty) |
वाशिंगटन (Washington) | पूसा डेलिसियस (Pusa Delicious) |
सोलो (Solo) | को. 1 (CO.1) |
रांची (Ranchi) | को. 2 (CO.2) |
ताइवान 785 (Taiwan-785) | को. 3 (CO.3) |
ताइवान 786 (Taiwan-786) | को. 4 (CO.4) |
आई आई एच आर 39 (IIHR 39) | को. 5 (CO.5) |
आई आई एच आर 54 (IIHR 54) | को. 6 (CO.6) |
पंत पपीता 1 (Pant Papaya 1) | को. 7 (CO.7) |
पैराडिनिया (Paradynia) | को. 11 (CO.11) |
पूसा नन्हा (Pusa Nanha) | पुणे सेलेक्सन 1 (Pune Selection 1) |
अर्का प्रभात (Arka Prabhat) | पुणे सेलेक्सन 3 (Pune Selection 3) |
सनराइज सोलो (sunrise solo) | बडवानी लाल (Badwani Lal) |
सूर्या (Surya) | बडवानी पीला (Badwani pila) |
विनायक (Vinayak) | माधुरी (Madhuri) |
मधुबाला (Madhubala) | रेड लेडी 786 (red lady 786) |
ऊपर के सारणी मे कुछ पपीता के किस्मों का नाम दिया गया है।
पपीता की खेती कैसें करें (Papita ki Kheti kaise kare)
पपीता की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and Climate for Papaya Farming)
पपीते की खेती के लिए वैसी मिट्टी को अच्छा माना जाता हैं जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो। इसकी खेती के लिए हल्की दोमट या दोमट मृदा उपयुक्त होता हैं। 6.5 से 7.5 तक की पी.एच मान वाली मृदा इसकी खेती के लिए अच्छी होती हैं। किसानों को पपीता की खेती (papita ki unnat kheti) करने के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं।
पपीता उत्पादन के लिए धूप एवं उचित तापमान आवश्यक हैं यह एक ऊष्ण जलवायु का पौधा हैं जो अधिक पाला बर्दास्त नही करता हैं पपीता पाले के प्रति असहनशील होता हैं। पपीते की फसल के लिए 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे का तापमान ज्यादा दिनों तक नही होना चाहिए। जबकी पपीते की फसल 45 डिग्री सेल्सियस तक अधिकतम तापमान सहन कर सकता हैं।
पपीता की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for papaya cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से दो बार क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। किसानों को खेत की जुताई हो जाने पर सिंचाई एवं जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
पपीता का पौध तैयार करना (Preparing Papaya Seedlings)
व्यवसायिक रूप से पपीते का प्रवर्धन बीज के द्वारा किया जाता हैं पपीते का पौध तैयार करने के लिए पौधशाला मे क्यारियाँ दो प्रकार से बनायी जाती हैं पहला ऊंची उठी हुई तथा दूसरा समतल क्यारियाँ बनाई जाती हैं। ऊंची उठी हुई क्यारियां मुख्यतः वर्षा ऋतु मे पौध तैयार करने हेतु बनाई जाती हैं। समतल क्यारी मुख्यतया शरद ऋतु मे पौधे तैयार करने हेतु बनाई जाती हैं। ऊंची उठी हुई क्यारी की लंबाई 3 से 5 मीटर, चौङाई 1 मीटर तथा ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए। एवं दो क्यारियों के बीच मे 30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए जिससे आसानी से क्यारियों मे कीटनाशक एवं रोगनाशक दवाओं का उपयोग आसानी से किया जा सके।
पपीते के बीज को 10 सेंटीमीटर के अंतर पर पंक्तियों मे 3 सेंटीमीटर की दूरी तथा 1 सेंटीमीटर गहराई पर बोया जाता हैं एक हैक्टेयर भूमि मे रोपण के लिए 250 से 300 ग्राम बीज एवं संकर किस्मों का 80 से 100 ग्राम बीज पर्याप्त होता हैं। बीज के बुआई के तुरंत बाद हजारे से सिंचाई करना चाहिए। पौधे बुआई के 40 से 50 दिनों के बाद रोपाई हेतु तैयार हो जाता हैं।
पपीते के पौधों की रोपण दूरी (Planting distance of papaya plants)
यदि पपीते की पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2×2 मीटर रखते हैं तो एक हेक्टेयर मे 2500 पौधे लगेंगे। वहीं इसकी दूरी 1.8×1.8 मीटर रखते हैं तो एक हेक्टेयर मे 3086 पौधे लगेंगे।
पौध रोपण का समय (planting time)
पपीते के पौधा रोपण का उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त एवं फरवरी-मार्च होता हैं। (desi papaya farming)
पपीते के पौधे का रोपण (papaya plant planting)
जिस खेत मे पपीते की खेती करना उस चुने गए खेत को जुताई करके साफ कर लेना चाहिए। इसके बाद खेत मे 2-2 मीटर की दूरी पर 60 सेंटीमीटर चौङे, 60 सेंटीमीटर लंबे और 60 सेंटीमीटर गहराई के गड्डे खोद लेना चाहिए। और वर्षा ऋतु से पहले ही गड्ढों मे गोबर की खाद मिली हुई मिट्टी भर देना चाहिए। वर्षा शुरू होने के बाद प्रत्येक गड्डे मे उचित दूरी पर पौधों की रोपाई करनी चाहिए।
पपीते की खेती मे इंटरक्रॉपिंग (Intercropping in papaya farming)
कई किसान ऐसे हैं जो पपीते की खेती (papita ki kheti) मे इंटरक्रॉपिंग करके अच्छे पैसे कमाते हैं किसान इंटरक्रॉप के रूप मे सब्जियां जैसे फूलगोभी, पत्तागोभी, प्याज, लहसुन आदि की खेती कर सकते हैं। पपीते के पौधे के मध्य मे पहले वर्ष मे कम बढ़ने वाली सब्जियों की खेती आसानी से किया जा सकता हैं और इससे अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता हैं।
पपीते की फसल मे सिंचाई (Papita ki sichai kab kare)
पपीते की फसल के लिए मिट्टी मे पर्याप्त नमी का होना काफी आवश्यक माना जाता हैं पपीते की खेती मे पानी की कमी होने से पपीते के उत्पादन पर बहुत बुरा असर पङता हैं। पपीते की खेती मे गर्मियों के मौसम मे 6 से 7 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों मे 10 से 12 दिनों के अंदर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। संभव हो तो किसानों को ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना चाहिए। ड्रिप सिंचाई का पपीते की खेती मे इस्तेमाल होने से पानी की बचत होगी साथ ही पपीते की खेती से अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता हैं।
पपीते की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in papaya crop)
पपीता की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण पपीता की खेती (papita ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए रोपाई के बाद जरूरत के मुताबिक निराई-गुङाई खुरपी की मदद से या मशीन द्वारा करनी चाहिए।
पपीता की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of papaya crop)
पपीता की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट सफेद मक्खी, लाल मकडी आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा पपीता की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है पपीता की फसल मे प्रमुख्य रोग तना व पौध गलन, पत्ती कुंचन रोग, पपीते का मोजेक रोग एवं एन्थेक्नोज आदि जैसे रोग पपीता की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
पपीता की फलों की तुङाई (Papaya Fruit Harvesting)
जब पपीते की फल तथा फल के गूदे का रंग हल्का पीला होने लगे तो उस समय फल की तोङाई करनी चाहिए। फल की तूङाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की फल पर किसी भी तरह का खरोंच न आए। संभल कर फल की तूङाई करनी चाहिए। खरोंच या दाग-धब्बे न पङे अन्यथा उन पर कवकों का प्रकोप हो जाएगा। जिससे फल सङ जायेगे। खेत से फल को तोङ कर क्रेट मे रखे। बाद मे फलों को अलग अलग करके कागज मे लपेट कर उन्हे लकङी या गट्टे के डिब्बे मे रखना चाहिए। डिब्बे के अंदर की ओर कुछ मुलायम वस्तु कागज, भूसा आदि के टूकङे बिछा देते हैं जिससे फलों पर दवाब न आए और खरोंच भी न आ पाए। ऐसा करने से फल सुरक्षित रहता हैं जिससे किसानों को फलों का अच्छा कीमत मिलता हैं।
पपीता की फल की उपज (papaya fruit yield)
पपीता की उपज पपीता की किस्म, खेत (papaya farm) की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर पपीते के प्रति पौधे से 40 से 50 किलोग्राम पपीता प्राप्त होता हैं। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
✅ पपीता से बने उत्पाद को ऑनलाइन यहाँ से ऑर्डर किया जा सकता हैं – Click here
पपीता से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Papaya FAQs)
पपीता उगाने में कितना समय लगता है?
|
पपीता उगाने में 8 से 12 महीन का समय लगता हैं।
|
पपीता उगाने के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी होती है?
|
पपीता उगाने के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
|
पपीते मे पीले रंग का कारण क्या होता हैं? |
पपीते का पीले रंग का कारण कैरिकाजैन्थिन (caricaxanthin) हैं। |
पपीते का प्रवर्धन किसके द्वारा होता हैं? |
पपीते मे प्रवर्धन बीज के द्वारा होता हैं। |
पपीता के एक पौधा से कितना किलो फल प्राप्त होता हैं? |
वैसे आमतौर पर पपीते के प्रति पौधे से 40 से 50 किलोग्राम पपीता का फल प्राप्त होता हैं। |
तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी पपीता की खेती (Papaya Farming in Hindi) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।
यह भी पढे..