सोयाबीन (Soyabean) तिलहनी फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जिसे गोल्डन बीन के नाम से भी जाना जाता हैं। सोयाबीन मे तेल की मात्रा लगभग 22 प्रतिशत होती है। बाजारों मे सोयाबीन के तेल की मांग मूँगफली, सरसों के बाद सर्वाधिक होता हैं जिसकी वजह से बाजारों मे मांग हमेशा बनी रहती हैं। सोयाबीन की मुख्य रूप से पूर्वी भारत मे खेती की जाती है. सोयाबीन से अधिक मात्रा में तेल प्राप्त किया जाता हैं। इसमे भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाने के कारण शरीर को फीट रखने के लिए लोग इसे सुबह के नास्ते मे खाते है। शाकहारी मनुष्यों के लिए इसे मांस भी कहा जाता है क्योंकि इसमें अधिक मात्रा मे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा पाया जाता हैं। सोयाबीन में एंटीबायोटिक अम्ल पाये जाने के कारण इसे दवा बनाने मे इस्तेमाल किया जाता हैं। अतः यह मानवों के स्वस्थ के लिए काफी लाभदायक साबित होता है।
सोयाबीन की खेती (Soyabean ki kheti) लगभग सभी देशो मे की जाती हैं जैसे – जापान, भारत, चीन एवं ब्राजील आदि। विश्व का लगभग 60 प्रतिशत सोयाबीन का उत्पादन अमेरिका में किया जाता है भारत मे सोयाबीन की खेती ज्यादातर मध्यप्रदेश, महराष्ट्र और राजस्थान इन प्रमुख राज्यों में किया जाता है इन सभी राज्यों मे सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन मध्यप्रदेश मे किया जाता हैं।
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सोयाबीन के किस्में (Soyabean ki kisme)
जे.एस. 335 (J.S 335) | पी. के. 472 (P.K 472) |
जे.एस. 93-05 (J.S 93-05) | प्रताप सोया 45 (Pratap Soya 45) |
जे.एस. 97-52 (J.S 97-52) | एम.ए.यू.एस 162 (M.A.U.S 162) |
जे.एस. 20-29 (J.S 20-29) | एम.ए.यू.एस 158 (M.A.U.S 158) |
जे.एस. 20-34 (J.S 20-34) | पूसा 9712 (PUSA 9712) |
जे.एस. 95-60 (J.S 95-60) | पूसा 9814 (PUSA 9814) |
जे.एस. 20-69 (J.S 20-69) | आर.के.एस 45 (R.K.S 45) |
आर.वी.एस. 2001-4 (R.V.S 2001-4) | एम.ए.सी.एस 1188 (M.A.C. S 1188) |
फुले अग्रणी (Phule Agrani) | एम.ए.सी.एस 450 (M.A.C. S 450) |
एन.आर.सी. 86 (N.R.C 86) | डी.एस.बी 21 (D.S.B 21) |
एन.आर.सी. 7 (N.R.C 7) | डी.एस.बी 1 (D.S.B 1) |
एन.आर.सी 12 (अहिल्या -2) NRC 12 | डी.एस.बी 19 (D.S.B 19) |
एन.आर.सी. 37 (N.R.C 37) | इंदिरा सोया 9 (Indira Soya 9) |
एन.आर.सी. 77 (N.R.C 77) | प्रताप सोया 1 (Pratap Soya 1) |
पंत सोयाबीन 1029 (Pant Soybean 1029) | प्रताप सोया 2 (Pratap Soya 2) |
पंत सोयाबीन 564 (Pant Soybean 564) | पूसा 16 (Pusa 16) |
पंत सोयाबीन 1024 (Pant Soybean 1024) | पूसा 24 (Pusa 24) |
पंत सोयाबीन 1042 (Pant Soybean 1042) | वी.एल.सोया 89 (V.L. Soya 89) |
पीके 416 (P.K 416) | वी.एल.सोया 77 (V.L. Soya 77) |
आर.के.एस 24 (R.K.S 24) | वी.एल.सोया 65 (V.L. Soya 65) |
आर.के.एस 18 (R.K.S 18) | वी.एल.सोया 63 (V.L. Soya 63) |
पी.एस 1521 (P.S 1521) | पी.एस 1477 (P.S 1477) |
सोयाबीन की खेती के लिये उपयुक्त भूमि (Suitable land for soybean cultivation)
सोयाबीन की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी को काफी अच्छा माना जाता हैं इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6 से 7.5 उपयुक्त होता हैं। सोयाबीन की खेती (Soyabean ki kheti) के लिए किसानों को ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसमे जल जमाव न होता हो। इसकी फसल को जल जमाव एवं कम तापमान काफी प्रभावित करती हैं इसलिए किसानों को इन बातों को ध्यान मे रखकर इसकी खेती करना चाहिए।
सोयाबीन की खेती के लिए जलवायु (Climate for Soybean Cultivation)
सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) के लिए गर्म और नम जलवायु उचित माना जाता है।
सोयाबीन की खेती के लिए मिट्टी कि तैयारी (Soil preparation for soybean cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। सोयाबीन की बुआई करने के लिए खेत की दो से तीन बार जुताई करें जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए। साथ ही जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को समतल कर ले।
गर्मीयों के मौसम मे खेतों की गहरी जुताई करने से मिट्टी में उपस्थित कीङे, रोग और खरपतवार नष्ट हो जाते है तथा मिट्टी मे पानी और हवा का संचार अच्छे से हो पाता है।
सोयाबीन की बुआई के लिए बीज दर (Seed Rate for Soybean Planting)
छोटे दानों वाले सोयाबीन के किस्मों की बीज दर | 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर |
माध्यम आकार के दानों वाले सोयाबीन के किस्मों की बीज दर | 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर |
बङे आकार के दानों वाले सोयाबीन के किस्मों की बीज दर | 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर |
सोयाबीन की बुआई का समय (Soyabean ki buai ka samay)
सोयाबीन की कम अवधि वाली किस्मों की बुआई जुलाई के प्रथम सप्ताह मे कर देनी चाहिए। साथ ही देरी से एवं मध्यम अवधि वाली किस्मों की बुआई 20 से 30 जून तक कर देनी चाहिए। 15 जुलाई के बाद सोयाबीन की बुआई करने की सिफ़ारिश नहीं की जाती हैं।
सोयाबीन के बीज का बीजोपचार (Soybean Seed Treatment)
सोयाबीन की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है। थायरम + कार्बेन्डाजिम (2:1) के तीन ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज मे मिलाकर बीजों को उपचारित करें। कीटनाशी एवं फफूंदनाशक से बीजों को उपचारित करने के बाद राइजोबियम, पी.एस.बी. (Phosphate Solubilizing Bacteria) से बीजोपचार करते हैं।
सोयाबीन की बुआई (Soyabean ki buai)
सोयाबीन की बुआई सीड कम फर्टिड्रिल मशीन का इस्तेमाल करके भी किया जा सकता हैं सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) के लिए मेङ पर, नाली विधि एवं चौङी पट्टी नाली विधि का प्रयोग काफी अच्छा माना जाता हैं। इस विधि से बुआई करने पर यदि बारिश हो तो पानी को नालियों के द्वारा आसानी से बाहर निकाला जा सकता हैं जिससे खेतों मे जल जमाव की समस्या नहीं उत्पन्न होती हैं। खेतों मे जल जमाव न होने से किसानों की फसल सुरक्षित रहती हैं।
सोयाबीन की अधिक शाखा वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर एवं सीधी बढ़ने वाली एवं जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं और पौधों से पौधों की बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखते हैं। सामान्यतः बीज की बुआई 2 से 3 सेंटीमीटर से अधिक गहराई मे नही करनी चाहिए। कतार में फसल बोने की वजह से सिंचाई, निराई-गुराई, कटाई आदि का कार्य करने मे आसानी होती हैं।
सोयाबीन की खेती मे कब करें, सिंचाई (Soyabean me sinchai kab karen)
सोयाबीन की खेती उबड़ खाबड़ खेतों मे नहीं करनी चाहिए। सोयाबीन की फसल को मुख्य रूप से वर्षा के समय सिंचाई की जरुरत नहीं होती हैं लेकिन फूल आने के समय एवं फलियों में दाना बनते समय पानी की कमी नहीं होने देना चाहिए। इसकी फसल को आवश्यकता के अनुसार 1 से 2 बार सिंचाई करें। किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फसल के पुष्पावस्था से लेकर दाना भरने की अवस्था तक मे नमी की कमी न हो।
सोयाबीन की खेती मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in soybean cultivation)
सोयाबीन की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण सोयाबीन की खेती (Soyabean ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङता है, अतः खरपतवारों से निजात पाने के लिए बुआई के 20 एवं 40 दिन के बाद निदाई एवं गुडाई करके फसल को खरपतवार से मुक्त कर ले।
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सोयाबीन के प्रमुख कीट एवं रोग (Major pests and diseases of soybean)
सोयाबीन की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट ब्लू बीटल, गर्डल बीटल, सेमीलूपर, तंबाकू की इल्ली, सफेद मक्खी, तना मक्खी, बिहार रोमेदार इल्ली, फली भेदक एवं कटुआ इल्ली आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जोकि हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा सोयाबीन की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है सोयाबीन की फसल मे प्रमुख्य रोग जीवाणु म्लानि, तंबाकू विषाणु रोग, पीला विषाणु रोग, चारकोल रॉट, कॉलर रॉट, गेरुआ रोग एवं एंथेक्नोस आदि जैसे रोग सोयाबीन की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
सोयाबीन की फसल की कटाई एवं उपज (Harvesting and yield of soybean crop)
जब सोयाबीन की फसल पककर तैयार हो जाती हैं तो इसके पत्ते पिले होकर गिरने लगते हैं तथा सोयाबीन के दाने जब पिले हो जाये तो पता चलता है कि सोयाबीन की फसल काटने योग्य हो गया है। जब फसल काटने योग्य हो जाये तो कटाई कर ले और इसके बाद 2 से 3 दिनों तक फसल को धूप मे सुखा ले। फसल के पूरी तरह से सुख जाने के बाद इसकी गहाई (दौनी) थ्रेशर आदि यंत्र से करके दानों को अलग कर ले।
सोयाबीन की उपज सोयाबीन की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 25 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
सोयाबीन का भंडारण (Soybean storage)
सोयाबीन को सबसे पहले किसानों को अच्छी तरह धूप मे सूखा लेना चाहिए। खराब सोयाबीन को निकाल दे। भंडरण के लिए हमे साफ स्थान का चुनाव करनी चाहिए और वहां पर नमी भी नहीं होनी चाहिए। किसानों को भंडरण के समय एक बोरी के उपर एक बोरी को नहीं रखना चाहिए। (3 से 4 बोरी 50 किलोग्राम वजन वाली) एक के उपर एक बोरी रखने से सोयाबीन के खराब होने की संभावना ज्यादा होती है। सोयाबीन को 9 से 10 प्रतिशत नमी पर भंडारण करना चाहिए।
सोयाबीन की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
सोयाबीन बोने का सही समय क्या है? |
सोयाबीन की कम अवधि वाली किस्मों की बुआई जुलाई के प्रथम सप्ताह मे कर देनी चाहिए। साथ ही देरी से एवं मध्यम अवधि वाली किस्मों की बुआई 20 से 30 जून तक कर देनी चाहिए। |
सोयाबीन का उत्पति स्थान कहाँ हैं? |
सोयाबीन का उत्पति स्थान चीन हैं। |
सोयाबीन कितनी दूरी पर बोना चाहिए?
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सोयाबीन की अधिक शाखा वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर एवं सीधी बढ़ने वाली एवं जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं और पौधों से पौधों की बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखते हैं। |
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