नींबू की खेती (Nimbu ki Kheti) जहां बड़े पैमाने पर की जाती हैं वहीं इसे घर के किचन गार्डनिंग, गमले, बैकयार्ड फार्मिंग आदि मे भी खूब उगाया जाता हैं। यह छोटा सा दिखने वाला नींबू औषधीय गुणों का खजाना है। यह किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी तो हैं ही साथ ही इसका उपयोग कम या ज्यादा मात्रा मे लगभग सभी घरों मे उपयोग किया जाता है। नींबू मे खट्टापन पाए जाने के कारण इसका इस्तेमाल सब्जियों को जायकेदार बनाने मे किया जाता हैं। इसके अलावा इसका इस्तेमाल रिफ्रेशिंग ड्रिंक्स बनाने के लिए किया जाता है। जिसकी वजह से इसकी मांग बाजारों मे पूरे साल भर होती हैं नींबू की बाजारों मे पूरे साल मांग होने से एवं अच्छी कीमत मिलने से इसकी अब व्यवसायिक खेती भी की जा रही हैं।
नींबू एक महत्वपूर्ण फल है जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। यह हमारे देश मे उगाई जाने वाली नींबू वर्गीय फलों मे से एक हैं। जिसे हमारे देश के लगभग सभी राज्यों मे उगाया जाता हैं। नींबू मे विटामिन सी के अलावा विटामिन ए, विटामिन बी तथा खनिज प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। नींबू विटामिन सी का एक अच्छा श्रोत है। नींबू का पीला रंग बेरियम के कारण होता है। नींबू का उपयोग सब्जी को जायकेदार बनाने मे, सलाद, अचार और फार्मास्युटिकल कंपनी में दवाई बनाने व अन्य सामानों को बनाने मे किया जाता है। नींबू की खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आय का एक बेहतर जरिया है, क्योंकि नींबू की खेती एक व्यवसाय के रूप में अपना स्थान रखती है।
हमारे देश मे नींबू के उत्पादन मे आंध्रप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं पंजाब का मुख्य योजदान हैं। इन सभी राज्यों मे नींबू की बड़े स्तर पर खेती की जाती हैं। नींबू को पीस के हिसाब से खुले बाजार मे बेचा जाता है अगर बाजार मे इसका अच्छा कीमत मिले तो इससे काफी अच्छी आमदनी होती हैं। वैसे तो नींबू की खेती करना आसान हैं अगर किसानों को मौसम आदि का साथ मिले तो। इसकी खेती करने के दौरान अगर किसान कुछ चीजों का ध्यान रखे तो इसकी खेती मे सफलता पाई जा सकती हैं तो आइये अब जानते हैं नींबू की खेती (Nimbu ki Kheti ki Jankari) से जुङी जानकारी। किसान यदि नींबू की खेती करने की सोच रहे है तो ये पोस्ट उनके लिये काफी लाभकारी साबित हो सकता है।
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नींबू की किस्म (Nimbu ki kism)
Eureka (यूरेका) | Taahiti (ताहिती) |
Lisbon (लिस्बन) | Baramasi (बारामासी) |
Villafranca (विल्लाफ्रेंक) | P.K.M – 1 (पी.के.एम 1) |
Kagzi klan (कागजी कलां) | Kagzi Lemon (कागजी नींबू) |
Pant lemon -1 (पंत लेमन -1) | Selection 49 (सेलेक्सन 49) |
Pramalini (प्रमालानी) | A.R.L.- 1 (ए.आर.एल 1) |
Vikram (विक्रम) | A.L.H.- 77 (ए.एल.एच 77) |
Sai Sharbati (साई शरबती) | Jaidevi (जयदेवी) |
Chakradhar (चक्रधर) |
ऊपर के सारणी मे कुछ नींबू (lemon variety) के किस्मों का नाम दिया गया है।
नींबू की खेती कैसें करे (Nimbu ki Kheti kaise karen)
नींबू की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for Nimbu cultivation)
वैसे तो नींबू की खेती (Lemon ki kheti) सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती हैं लेकिन इसकी खेती के लिए अच्छी जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी जिसमे जल जमाव न हो इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं। यानि कि किसान जिस खेत मे नींबू की खेती कर रहे हैं उसमे जल जमाव न हो इसके लिए किसानों को पहले से ही इसका उपाय कर लेना चाहिए। इसकी खेती के लिए खेत की मिट्टी का पी0 एच0 मान 5.5 से 7.0 हो तो ऐसी भूमि नींबू की खेती के लिए अच्छी होती है।
जलवायु इसकी खेती पर काफी प्रभाव डालता हैं क्योंकि नींबू का रंग और आकार दोनों जलवायु से प्रभावित होती हैं और नींबू का तो रंग और आकार ही गुणवत्ता होता हैं। नींबू की खेती के लिए गर्म पाला रहित तथा नम जलवायु की आवश्यकता होती है। न तो ये फसल ज्यादा गर्मी सहन कर पाता हैं और ना ही ज्यादा ठंडी क्योंकि ज्यादा गर्मी से इसकी फलों के रंग एवं स्वाद पर प्रतिकूल प्रभाव पङता हैं और ठंडी के दिनों मे इसकी फसल पाला सहन नही कर पाती हैं।
नींबू की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for lemon cultivation)
नींबू की खेती (Lemon Farming) करने के लिए फरवरी-मार्च या मई-जून में मानव श्रम या मशीन के द्वारा 5×5 मीटर की दूरी पर वर्गाकार या आयताकार विधि से रेखा करके गड्ढों की खुदाई करवा ले। गड्ढों का आकार 60×60×60 सेंटीमीटर का रखना चाहिए। खेत में गड्ढे करने के उपरांत एक माह तक गड्डे को खुला रखते हैं। इससे मिट्टी का संक्रमण कम होता है तथा सूर्य की किरणों से गड्ढों की दीवारे भी उपचारित होती है। इसके बाद नींबू के पौधों की रोपाई की जा सकती हैं। अच्छे एवं स्वस्थ पौधे ही किसानों को लगाना चाहिए। जिससे की बाद मे कोई रोग आदि का संक्रमण न हो।
नींबू की प्रवर्धन विधि (Lemon Propagation Method)
नींबू में एक से अधिक पौधे तैयार करने की चार विधियाँ है जिसके द्वारा पौधे को तैयार किया जाता है जो नीचे लिखे गए है।
- बीज द्वारा (by seed)
- गूटी विधि (gooty method)
- कलम विधि (kalam method)
- कलिकायन विधि (klikayan method)
नींबू मे बहुभ्रूणता होने के कारण एक बीज से अनेक पौधे तैयार होते हैं बीज द्वारा तैयार किए गए पौधे अच्छे फल दे सकते हैं लेकिन पौधों मे फल देर से आते हैं। वहीं अगर बात करे गूटी विधि से पौधे तैयार करने की तो गूटी विधि से एक वर्ष पुरानी शाखाओं पर जुलाई-अगस्त के महीने मे पौध तैयार करते हैं। गूटी विधि से पौधे तैयार करने के लिए ऐसी शखाओं का चयन करते हैं जिसका आकार पेंसिल के समान हो।
नींबू की नर्सरी कैसे तैयार करें (How to prepare lemon nursery)
- जिस जगह पर नींबू की फसल के लिए नर्सरी तैयार करनी है उस जगह की मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। भूमि की जुताई हो जाने के बाद खेत की मिट्टी मे उपलब्ध खरपतवार को चुनकर बाहर निकाल लेना चाहिए जिससे की नर्सरी मे खरपटवारों का प्रकोप कम हो। मिट्टी मे गोबर या कम्पोस्ट की खाद को आवश्यकता के अनुसार मिलाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए।
- नींबू की पौध तैयार करने के लिए क्यारियों का निर्माण कर ले। क्योरियों का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखे की क्यारी जमीन से ऊंची उठी हुई हो ताकि वर्षा होने से क्यारी मे पानी न लगे। इसके बाद नींबू के बीज को क्यारियों मे बुआई करें।
- नर्सरी मे बीजों की बुआई करने से पहले बीजों को केप्तान या बाविस्टीन से 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित कर ले। बीजों को उपचारित करने से बीज जनित रोग नही होते हैं।
- क्यारियों मे बीज की बुआई हो जाने के बाद फौव्वारे या हजारे से हल्की सिंचाई करें।
- नर्सरी मे लगे पौधों को समय-समय पर देखते रहना चाहिए। नर्सरी मे कोई रोग आदि का प्रकोप दिखे तो उसका निदान जल्दी करना चाहिए।
नींबू की पौध की रोपाई (Nimbu ki ropai kaise karen)
नींबू के पौध की रोपाई का उचित समय जुलाई-अगस्त का महीना हैं नींबू की पौध की रोपाई से पहले पौधों की कठोरीकरण (Hardening) करते हैं जिससे पौध रोपण के दौरान पौधों की मरने की डर कम रहती हैं। पौधों की कठोरीकरण करने के लिए पौधों को 24 से 48 घंटे तक खुले हवादार छाया वाली जगह पर रखते हैं। उसके बाद तैयार किए गए गड्ढों मे पौध की रोपाई करते हैं। पौध की रोपाई करते समय इस बात का ध्यान रखे कि वैसे पौधे को न लगाया जाए जो कि पहले से ही रोगों से ग्रसित हो और जो पौधा शुरू मे ही रोपाई के समय या रोपाई के कुछ दिन बाद मर जाए या सुख जाए तो वैसे पौधों के जगह पर नई पौधों का रोपाई करें।
नींबू की फसल की सिंचाई (Nimbu ki sichai kab kare)
नींबू की फल एवं उसकी गुणवत्ता अच्छी रहे इसके लिए समय-समय पर आवश्यकता पङने पर नींबू की सिंचाई करते रहना चाहिए। नींबू के बगीचों को गर्मियों के दिनों मे 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। वहीं सर्दियों के मौसम मे इसकी सिंचाई 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। संभव हो तो किसानों को ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना चाहिए। ड्रिप सिंचाई का नींबू की खेती (Lemon Farming) मे इस्तेमाल होने से पानी की बचत होगी साथ ही नींबू की खेती से अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता हैं। नींबू मे फूल आने की क्रांतिक अवस्था मे सिंचाई कुछ दिनों के लिए रोक देना चाहिए क्योंकि नींबू के पौधों मे सिंचाई करते ही फूलों की गिरने की समस्या होती हैं इसलिए इस बात को ध्यान मे रखना चाहिए।
नींबू की पौधों की कटाई-छटाई (lemon tree pruning)
वैसे तो आमतौर पर नींबू मे कटाई-छटाई नही की जाती हैं लेकिन अनियंत्रित एवं असीमित वृद्धि वाली शाखाओं को दिसंबर के महीने मे कटाई-छटाई करके नियंत्रित कर सकते हैं।
नींबू की बाग मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in lemon orchard)
नींबू के बागों मे खरपतवार का ज्यादा प्रकोप होने पर इसका नियंत्रण करना काफी महत्वपूर्ण होता है। छोटे पौधों मे 15 दिन के अंतराल पर हल्की निराई गुङाई करें। इसकी फसल मे निराई-गुड़ाई करके खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है इसके अलावा खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए खरपतवारनाशी का उपयोग किया जा सकता हैं।
पौधों की जड़ों की समुचित विकाश के लिए निराई-गुड़ाई करना काफी आवश्यक माना जाता है इसकी फसल मे निराई-गुड़ाई करने से जड़ों के आस-पास की मिट्टी ढीली हो जाती है जिससे की हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अच्छा प्रभाव हमारी फसल के पैदावार पर पड़ती है अगर सिंचाई करने या मौषम मे पौधों की जड़ों के पास की मिट्टी हट गई हो तो ऐसे मे चारो तरफ से पौधों के जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
नींबू की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of lemon crop)
नींबू की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट नींबू का सिल्का, नींबू का पर्ण सुरंगक, सफेद मक्खी, नींबू की तितली, नींबू का एफीड, फल छेदक माँठ, छाल भक्षक सुंडी एवं नींबू मे माइट आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा नींबू की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है नींबू की फसल मे प्रमुख्य रोग गमोसिस, सिट्रस केंकर, स्केब, ग्रीनिंग, डाईबेक, ट्रिस्टेजा विषाणु, धीमा उखरा/क्षय रोग, कणिकायन आदि जैसे रोग नींबू की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
नींबू की फलों की तुड़ाई (lemon fruit harvesting)
नींबू की फलों की तुङाई सही समय पर करना चाहिए जब फलों का रंग हल्का पीला हो जाए तो इसकी तुङाई करें। सामान्य तापमान पर नींबू को 8 से 10 दिनों तक सुरक्षित भंडारित किया जा सकता हैं।
नींबू की उपज (Lemon yield)
नींबू की उपज नींबू की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज प्रति पेड़ 40 से 50 किलोग्राम या 300 से 500 फल प्रति पेड़ हैं। नींबू के फलदार पौधों की औसत फलन आयु लगभग 25-30 वर्ष तक होती है। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी देखभाल पर निर्भर करता है।
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नींबू की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Lemon FAQs)
नींबू मे कौन सा अम्ल होता है? |
नींबू मे सिट्रिक अम्ल (citric acid) पाया जाता है। |
नींबू के एक पौधे से कितना फल प्राप्त होता है? |
नींबू के एक पौधे से 40 से 50 किलो प्रति पेड़ या 300 से 500 फल प्रति पेड़ प्राप्त होता है। |
नींबू का एक पौधा कितने दिनों तक फल देता है? |
नींबू का एक पौधा लगभग 25 से 30 वर्ष तक फल देता है। |
नींबू उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व मे कौन सा स्थान है? |
नींबू उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व मे तीसरा स्थान है। |
तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी नींबू की खेती (Nimbu ki Kheti in Hindi) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।
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