मिर्च की खेती (Mirch ki Kheti) लगभग देश के सभी राज्यों मे की जाती हैं। भारत मे आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा राजस्थान प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्य हैं। भारत के आंध्रप्रदेश राज्य का मिर्च उत्पादन मे प्रथम स्थान हैं। मिर्च मसाले वाली एक महत्वपूर्ण नगदी फसल हैं। मिर्च का उपयोग हरी एवं लाल दोनों ही अवस्थाओं मे किया जाता हैं। हरी मिर्च का इस्तेमाल सब्जी बनाने मे, सलाद मे, चटनी आदि मे किया जाता हैं। वहीं लाल मिर्च (lal mirch ki kheti) मुख्य रूप से खङी एवं पाउडर के रूप मे मसाले मे उपयोग होता हैं। मिर्च मे विटामिन ए, सी एवं खनिज लवण भी पाया जाता हैं। सभी के घरों मे खाने बनाने मे मिर्च का इस्तेमाल प्रतिदिन किया जाता हैं चाहे वो दाल बनानी हो या सब्जी सभी मे मिर्च का इस्तेमाल होता ही हैं।
हमारे देश मे मिर्च की खेती (Chilli Varieties) व्यवसायिक तौर पर भी की जा रही हैं कई किसान ऐसे है जो मिर्च की व्यवसायिक खेती करके अच्छे मुनाफे कमा रहे हैं। इसकी खेती से कम लागत मे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता हैं।
मिर्च का वानस्पतिक नाम कैप्सिका ऐनम हैं यह सोलेनेसी कुल का पौधा हैं इसका उत्पति स्थान मेक्सिको हैं। मिर्च के लाल रंग का कारण केप्सीथिन हैं एवं मिर्च मे तीखापन का कारण केप्सीसिन हैं। भूत जोलकिया दुनिया की सबसे तीखी मिर्च हैं इसे गोस्ट पेपर के नाम से भी जानते हैं।
आज के इस लेख मे मिर्च की बुआई से लेकर तुङाई तक की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी मिर्च की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको मिर्च की खेती (Chilli Farming in hindi) से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।
Page Contents
मिर्च की किस्म (Mirch ki kism)
अर्का अबीर (Arka Abeer) | पूसा ज्योति (Pusa Jyoti) |
के.टी 19 (K.T 19) | पूसा क्रांति (Pusa Kranti) |
सिंदूर (Sindur) | आन्ध्र ज्योति (Andhra Jyoti) |
कल्याणपुर येलो (Kalyanpur Yellow) | ज्वालामुखी (Jwalamukhi) |
अर्का लोहित (Arka Lohit) | पूरी रेड (Puri red) |
पूसा सदाबहार (Pusa Sadabhar) | अग्नि (Agni) |
पूसा ज्वाला (Pusa Jwala) | MDU 1 |
भाग्य लक्ष्मी (bhagya lakshmi) | अपर्णा (Aparna) |
पंजाब लाल (Punjab Lal) | मथानिया लोंग (Mathaniya Long) |
भास्कर (Bhaskar) | कल्याणपुर टाइप 1 (Kalyanpur Type 1) |
जवाहर मिर्च (Jawahar Mirch) | पटना सूर्या (Patna Surya) |
अर्का मेघना (Arka Meghna) | पंत सी 1 (Pant C 1) |
एन पी 46 ए (N.P 46 A) | एलीफेंट ट्रंक (elephant trunk) |
जी 3 (G 3) | जी 5 (G 5) |
हंगेरियन वैक्स (Hungarian Wax) | पंत सी 2 (Pant C 2) |
जवाहर 218 (Jawahar 218) | काशी अर्ली (Kashi Early) |
आर सी एच 1 (R.C.H 1) | कल्याणपुर चमन (Kalyanpur Chaman) |
एल ए सी 206 (L.A.C 206) | तेजस्विनी (Tejaswini) |
एस.सी.ए 235 (S.C.A 235) | अर्का हरित (Arka Hrit) |
पंजाब सुर्खा (Punjab Surkha) | अर्का मोहिनी (Arka Mohini) |
सूर्य रेखा (Surya Rekha) | अर्का बसंत (Arka Basant) |
काशी अनमोल (Kashi Anmol) | अर्का गौरव (Arka Gaurav) |
फुले ज्योति (Phule Jyoti) | इंदिरा (Indira) |
काशी गौरव (Kashi Gaurav) | काशी तेज (Kashi Tej) |
काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) | मुसालवादी सिलेक्शन (Musalwadi Selection) |
हिसार शक्ति (Hisar Shakti) | अग्नि रेखा (Agni Rekha) |
फुले सूर्यमुखी (Phule surymukhi) | फुले मुक्ता (Phule Mukta) |
फुले साई (Phule Sai) | काशी रतना (Kashi Ratna) |
काशी अभा (Kashi Abha) | काशी सिंदूरी (Kashi Sindoori) |
काशी सुर्खा (Kashi Surkha) | कल्याणपुर चमत्कार (Kalyanpur Chamtkar) |
मिर्च की खेती कैसें करे (Mirch ki Kheti kaise kare)
मिर्च की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for chilli cultivation)
मिर्च (Chilli) की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होता हैं किसानों को मिर्च की खेती (Mirch ki unnat kheti) करने के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं।
मिर्च को उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों मे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता हैं मिर्च की खेती के लिए गर्म आर्द्र जलवायु को अच्छी मानी जाती हैं। इसकी खेती के लिए अधिक ठंड एवं अत्यधिक गर्मी दोनों ही हानिकारक होता हैं। अधिक तापमान होने पर मिर्ची मे फल नही बनते हैं।
मिर्च की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for chilli cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की भूमि को देसी हल या कल्टीवेटर से 2 से 3 बार जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। किसानों को खेत की जुताई हो जाने पर सिंचाई एवं जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए। (chilli cultivation)
मिर्च की नर्सरी कैसे तैयार करें (How to prepare chilli nursery)
- जिस जगह पर मिर्च की फसल के लिए नर्सरी तैयार करनी है उस जगह की मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। भूमि की जुताई हो जाने के बाद खेत की मिट्टी मे उपलब्ध खरपतवार को चुनकर बाहर निकाल लेना चाहिए जिससे की नर्सरी मे खरपटवारों का प्रकोप कम हो। मिट्टी मे गोबर या कम्पोस्ट की खाद को आवश्यकता के अनुसार मिलाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए।
- मिर्च की पौध तैयार करने के लिए क्यारियों का निर्माण कर ले। क्योरियों का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखे की क्यारी जमीन से ऊंची उठी हुई हो ताकि वर्षा होने से क्यारी मे पानी न लगे। इसके बाद मिर्च के बीज को क्यारियों मे बुआई करें।
- नर्सरी मे बीजों की बुआई करने से पहले बीजों को केप्तान या बाविस्टीन से 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित कर ले। बीजों को उपचारित करने से बीज जनित रोग नही होते हैं।
- क्यारियों मे बीज की बुआई हो जाने के बाद फौव्वारे या हजारे से हल्की सिंचाई करें।
- नर्सरी मे लगे पौधों को समय-समय पर देखते रहना चाहिए। नर्सरी मे कोई रोग आदि का प्रकोप दिखे तो उसका निदान जल्दी करना चाहिए।
- नर्सरी मे बुआई के 4 से 5 सप्ताह बाद पौध रोपण योग्य हो जाता हैं।
नोट – नर्सरी मे पौध तैयार करने के लिए खरीफ की फसल हेतु मई-जून मे तथा गर्मी की फसल के लिए फरवरी मार्च मे नर्सरी मे बीजों की बुआई करें।
मिर्च की बीज दर (Chilli seed rate)
एक हेक्टेयर मे मिर्च की खेती (chilli cultivation) करने के लिए मिर्च के पौध तैयार करने हेतु एक किलोग्राम बीज तथा संकर बीज 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होता हैं।
मिर्च की पौध की रोपाई (Mirch ki ropai)
गर्मी की फसल के लिए
कतार से कतार की दूरी | 60 सेंटीमीटर |
पौधों से पौधों की बीच की दूरी | 30 से 45 सेंटीमीटर |
खरीफ की फसल के लिए
कतार से कतार की दूरी | 45 सेंटीमीटर |
पौधों से पौधों की बीच की दूरी | 30 से 45 सेंटीमीटर |
संभव हो तो मिर्च की रोपाई शाम के समय मे करे। पौध रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। पौध की रोपाई करते समय इस बात का ध्यान रखे कि वैसे पौधे को न लगाया जाए जो कि पहले से ही रोगों से ग्रसित हो और जो पौधा शुरू मे ही रोपाई के समय या रोपाई के कुछ दिन बाद मर जाए या सुख जाए तो वैसे पौधों के जगह पर नई पौधों का रोपाई करें। कतार में रोपाई करने की वजह से सिंचाई, निराई-गुराई, फल की तोङाई आदि का कार्य करने मे आसानी होती हैं।
मिर्च की फसल मे सिंचाई (Mirch ki sichai)
मिर्च की फसल की सिंचाई आवश्यकता के अनुसार करते रहना चाहिए जिससे की फसल को पानी की कमी न हो। बरसात के दिनों मे अगर बराबर वर्षा हो रही हैं तो ऐसे मे सिंचाई की आवश्यकता नही होती हैं। गर्मी की फसल मे 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। संभव हो तो किसानों को ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना चाहिए। ड्रिप सिंचाई का मिर्च की खेती (Chilli Farming) मे इस्तेमाल होने से पानी की बचत होगी साथ ही मिर्च की खेती से अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता हैं।
मिर्च की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in chilli crop)
मिर्च की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण मिर्च की खेती (Chilli farming) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए प्रारम्भिक अवस्था मे फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। गुङाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की पौधों की जङे न कटे। खरपतवार का नियंत्रण रासायनिक विधि द्वारा भी किया जा सकता हैं।
मिर्च की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of chilli crop)
मिर्च की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट चेंपा, सफेद मक्खी, थ्रिप्स एवं फलबेधक आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा मिर्च की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है मिर्च की फसल मे प्रमुख्य रोग डैम्पिंग ऑफ, डाई बैक एवं एन्थ्रेक्नोज, पाउडरी मिल्ड्यू, फ्यूजेरियम मुरझान एवं विषाणु रोग आदि जैसे रोग मिर्च की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
मिर्च की तुड़ाई (chilli picking)
किसानों को मिर्च की फलों की तुङाई फल के पूर्ण विकसित होने पर ही करनी चाहिए। हरी मिर्च के लिए तुङाई फल लगने के 15 से 20 दिन बाद कर सकते हैं। लेकिन सुखी लाल मिर्च के लिए तुङाई करनी हैं तो एक या दो बार हरी मिर्च की तुङाई करें तथा मिर्च को पौध पर ही पकने के लिए छोङ दें। जब फलों का रंग लाल हो जाए तो मिर्च की तुङाई करें।
मिर्च की उपज (chilli yield)
मिर्च की उपज मिर्च की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर अच्छी तरह से उगाई गई फसल से लगभग 100 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हरी मिर्च (hari mirch ki kheti) की उपज होती हैं एवं सुखी मिर्च की उपज लगभग 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की हैं। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
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मिर्च की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (Chilli FAQs)
मिर्च की पौध कितने दिन में तैयार हो जाती है?
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मिर्च की पौध 30 से 35 दिन मे तैयार हो जाती हैं।
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भारत में सबसे ज्यादा मिर्च कहाँ होती है? |
भारत में सबसे ज्यादा मिर्च आन्द्रप्रदेश राज्य मे होती हैं। |
सबसे तीखी मिर्च कौन सी है? |
भूत जोलकिया दुनिया की सबसे तीखी मिर्च हैं। |
मिर्च से रंग निकालने की क्रिया को क्या कहते है? |
मिर्च से रंग निकालने की क्रिया को पेपरिका कहते हैं। |
मिर्च मे फल बनते समय कितना डिग्री तापमान होना चाहिए? |
20 से 25 डिग्री का तापमान |
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