स्ट्रॉबेरी (Strawberry) अपनी एक अलग ही रंग और विशेष स्वाद के लिए पहचानी जाती हैं। इसके फल बङे लुभावने, रसीले एवं पौष्टिक होते हैं। इसका पौधा छोटा, कोमल तथा बहुवर्षीय होता हैं। हमारे देश मे स्ट्रॉबेरी की खेती काफी वर्ष पहले से ही हो रही हैं लेकिन इसकी खेती कुछ वर्ष पहले तक केवल पहाङी क्षेत्रों मे ही की जाती थी। वर्तमान समय मे स्ट्रॉबेरी की नई उन्नत प्रजातियों के विकास से इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु मे की जा सकती हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती किसानों के लिए कम समय मे अच्छा मुनाफा दे सकती हैं। अगर किसान कम समय मे अच्छा मुनाफा लेना चाहते हैं तो स्ट्रॉबेरी की खेती करना किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता हैं।
किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती अन्य फल वाली फसलों की तुलना मे कम समय मे ज्यादा मुनाफा दिला सकती हैं क्योंकि यह अल्प अवधि वाली फसल है जिसका की बाजार मे मांग पूरे साल भर देखने को मिलता हैं। इसका कीमत भी किसानों को काफी अच्छा मिल जाता हैं। क्योंकि इसका उपयोग आईसक्रीम, जैम, केक, कैंडी आदि उत्पादों को बनाने मे फ्लेवर के रूप मे भी इस्तेमाल किया जाता हैं। स्ट्रॉबेरी को छोटे गमले, किचन गार्डन एवं बैकयार्ड फ़ार्मिंग मे भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता हैं।
स्ट्रॉबेरी की खेती मे अच्छा मुनाफा होने के कारण हमारे देश के मैदानी भागों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों मे पॉलीहाउस, हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक और सामान्य तरीके से भी स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों से स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसानों की संख्या तेजी से बढ़ा हैं। कई किसान इससे लाखों मे मुनाफा कमा रहे हैं तो आइये जानते हैं स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करें।
Page Contents
स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करें (Strawberry ki kheti kaise karen)
मिट्टी एवं जलवायु (Strawberry soil and climate)
स्ट्रॉबेरी की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी मे की जा सकती हैं लेकिन हल्की बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच मान 5.5 से 6.5 के मध्य हो साथ ही जल निकासी का समुचित व्यवस्था इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। स्ट्रॉबेरी फल उत्पादन के लिए सामान्य तापमान 15 से 35 डिग्री होना चाहिए तथा फूल खिलने के लिए 14 से 18 डिग्री का तापमान जरूरी हैं। इसमे पुष्पन प्रारंभ होने के लिए लगभग 10 दिनों तक 8 घंटे से कम प्रकाश अवधि की जरूरत होती हैं।
स्ट्रॉबेरी की किस्में (Strawberry Varieties)
कैमारोजा | फ्लोरिना |
पजारो | रेड कोट |
स्वीट चार्ली | विन्टर डाउन |
डगलस | ओसो ग्रैन्ड |
फेस्टिवल | ओफरा |
मिशनरी | गुरिल्ला |
चान्डलर | टियोगा |
सीस्कैप | डाना |
बेलरुवी | सेल्वा |
फर्न |
हमारे देश मे स्ट्रॉबेरी की बहुत सी किस्में उगाई जाती हैं अगर कोई किसान व्यवसायिक तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं तो उन्हे किस्मों का चयन क्षेत्र की जलवायु एवं मिट्टी की विशेषताओं को देखते हुए करना चाहिए।
मिट्टी की तैयारी
स्ट्रॉबेरी की पौध की रोपाई के लिए खेत की मिट्टी की तैयारी अच्छे से करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता हैं। किसान खेत की तैयारी करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल यानि एमo बीo प्लाऊ से कर सकते हैं तथा 2-3 जुताई देशी हल से करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर खेत को समतल कर ले। इसके बाद क्यारी बनाना शुरू करें।
पौधों की रोपाई के लिए बेड तैयार करना
स्ट्रॉबेरी की पौध की रोपाई के लिए ऊँची उठी हुई क्यारियों का निर्माण किया जाता है क्योंकि बेमौसम बारिश से खेतो मे अधिक जल हो जाने से इन क्यारियों की मदद से जल आसानी से बाहर निकाला जा सके। किसानों को क्यारियों (रेज़्ड बैड) का निर्माण करते समय कुछ बातों को ध्यान मे रखना चाहिए जो की निम्न हैं।
- जमीन की सतह से 25 से 30 सेंटीमीटर ऊँची उठी हुई क्यारी का निर्माण करें।
- क्यारी का चौङाई 100 से 120 सेंटीमीटर तथा लंबाई खेत की स्थिति एवं सुबिधा अनुसार रखे।
- दो क्यारियों के बीच 40 से 50 सेंटीमीटर चौङा खाली स्थान छोङे जिससे क्यारियों की देखभाल एवं विभिन्न कार्यों को करने मे आसानी हो। क्यारियों के निर्माण करने से किसानों को ड्रिप सिंचाई स्थापित करने मे आसानी होती हैं साथ ही फसलों मे रोगों का प्रकोप भी कम होता हैं।
स्ट्रॉबेरी की पौध लगाना (planting strawberries)
इसके पौधों की रोपाई का सही समय जलवायु पर निर्भर करता हैं उतरी भारत मे इसकी रोपाई सितंबर से नवंबर माह के मध्य मे किया जाता हैं। रोपाई के लिए स्वस्थ्य एवं रोगरहित पौधे का प्रयोग करें। स्ट्रॉबेरी की खेती से अधिक उपज लेने के लिए पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती हैं।
स्ट्रॉबेरी की फसल की सिंचाई (Strawberry crop irrigation)
स्ट्रॉबेरी की खेती मे पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। उसके बाद दो से तीन दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई करने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली उत्तम रहती हैं इस सिंचाई पद्धति से सिंचाई करने पर पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी बूँद-बूँद के रूप मे जङ के पास उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही ड्रिप सिचाई के माध्यम से पौधों को समय-समय पर उर्वरक एवं अन्य घुलनशील रासायनिक तत्वों को सीधे पौधों के जङो तक आसानी से पहुंचाया जा सकता हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती मे सिचाई करने का सही समय कई कारकों जैसे मिट्टी के प्रकार, मिट्टी मे कार्बनिक पदार्थों की मात्रा आदि पर निर्भर करता हैं।
यह भी पढे..कब और कैसे शुरू करें मशरूम की खेती
स्ट्रॉबेरी की खेती मे मल्चिंग
स्ट्रॉबेरी की खेती मे मल्चिंग या पलवार बिछाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैं स्ट्रॉबेरी की खेती मे मल्चिंग का प्रयोग करने से फल सीधे मिट्टी के संपर्क मे नहीं आते हैं जिससे फलों को सङने से बचाया जा सकता हैं। साथ ही मल्चिंग करने से खरपटवारों को नियंत्रण करने मे एवं सिचाई के आवश्यकता को कम करने मे भी मदद मिलती हैं। जिससे किसानों को खरपतवार के नियंत्रण मे होने वाले खर्चे मे कमी आती हैं। मल्चिंग के लिए सामन्यतः काले रंग की 50 माइक्रॉन की मल्चिंग सीट का प्रयोग किया जाता हैं। मल्चिंग के कार्य को जमीन की ऊपरी सतह पर सूखे पत्ते, टहनियों या घासफूस से ढककर भी किया जाता हैं। जिससे मल्चिंग सीट को खरीदने मे आने वाला खर्च नहीं होता हैं।
स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई एवं उपज (Strawberry harvest and yield)
स्ट्रॉबेरी की फलों की तुङाई सुबह मे सूरज निकलने से पहले करनी चाहिए क्योंकि इसके फल बङे नाजुक होते हैं तोङे हुए फलों को रखने के लिए ट्रे का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे की फलों को फलों के दवाब से नुकसान न पहुँचे। इसके फलों को दो से तीन दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता हैं। अतः किसानों को फलों के तुङाई के बाद फलों को छोटे डिब्बों मे वजन के अनुसार पैक कर बाजार मे बिक्री के लिए भेज देना चाहिए।
इसकी उपज कई बातों पर निर्भर करती है जैसे कि आप कौन से किस्म का स्ट्रॉबेरी की फसल कर रहे है, आपके यहाँ का जलवायु कैसा हैं, खेत मे पौधों की संख्या कितनी हैं एवं फसल की देख रेख कैसी की गई है। वैसे तो स्ट्रॉबेरी के प्रति पौधे से एक मौषम मे 500 से 600 ग्राम फल प्राप्त किए जा सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की एक एकङ खेती से करीब 80 से 100 क्विंटल फलों का उत्पादन लिया जा सकता हैं।
स्ट्रॉबेरी की खेती मे लो टनल का उपयोग
स्ट्रॉबेरी की खेती मे लो टनल का उपयोग फसल को पाले से बचाने के लिए किया जाता हैं लो-टनल एक कम ऊंचाई वाली संरचना होती हैं जिसका निर्माण खुले खेत मे उगाई जाने वाली फसल को कम तापमान/पाले से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किया जाता हैं। लो टनल दूसरी संरचनाओं के अपेक्षा मे काफी सस्ती एवं काफी कारगर तकनीक हैं।
➢ Strawberry live plants को ऑनलाइन यहाँ से ऑर्डर किया जा सकता हैं– Click here
स्ट्रॉबेरी की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
Q. स्ट्रॉबेरी का पौधा कब लगाया जाता है?
|
स्ट्रॉबेरी के पौधे की रोपाई का सही समय जलवायु पर निर्भर करता हैं उतरी भारत मे स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पौधों की रोपाई सितंबर से नवंबर माह के मध्य मे किया जाता हैं।
|
Q. स्ट्रॉबेरी कितने रुपए किलो है ?
|
स्ट्रॉबेरी का बाजार भाव 300 से 600 रुपये प्रति किलो तक होता है। |
Q. स्ट्रॉबेरी कैसे खाना चाहिए ?
|
स्ट्रॉबेरी को सामान्य तौर पर खाने के साथ सलाद के रूप मे खाया जा सकता हैं स्ट्रॉबेरी का उपयोग आईसक्रीम, जैम, केक, कैंडी आदि उत्पादों को बनाने मे फ्लेवर के रूप मे भी इस्तेमाल किया जाता हैं। |
Q. स्ट्रॉबेरी में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते है ?
|
स्ट्रॉबेरी मे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रैट, कैल्शियम, रेशा, फॉस्फोरस, लोह तत्व, शुगर, मैग्नीशियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं। |
Q. क्या स्ट्रॉबेरी के पौधों को गमले मे लगा सकते हैं ? |
जी हाँ, स्ट्रॉबेरी के पौधों को गमले मे लगा सकते है इसे किचन गार्डन एवं बैकयार्ड फ़ार्मिंग मे भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता हैं। |
तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे मे जानकारी पहुँचाए।
यह भी पढे..