चीनी की मांग दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही हैं गन्ना चीनी का मुख्य स्त्रोत हैं चीनी की मांग की पूर्ति के लिए भविष्य मे गन्ने की खेती (Ganna ki Kheti) मे वृद्धि करना पङ सकता हैं। भारत की महत्वपूर्ण नगदी फसलों मे एक हैं गन्ना। पूरे विश्व मे गन्ना की खेती सबसे ज्यादा ब्राजील मे की जाती हैं भारत गन्ने की खेती करने मे विश्व मे दूसरे स्थान पर आता हैं। भारत और ब्राजील मिलकर विश्व के कुल गन्ना उत्पादन का 50% उत्पादन करते हैं। किसानों को गन्ने की खेती करने मे कई तरह के कार्य करने होते हैं इसकी बुआई से लेकर कटाई तक मे किसानों को काफी मेहनत करना पङता हैं तब जाकर गन्ना का उत्पादन होता हैं।
गन्ना की खेती कुछ राज्यों को छोङकर लगभग देश के सभी राज्यों मे किया जाता हैं। इसकी खेती हमारे देश मे प्राचीन काल से ही होते आ रहा हैं और अभी भी इसकी खेती बङे पैमाने पर की जाती हैं। गन्ने से गन्ना का जूस, गुङ और शक्कर आदि बनाया जाता हैं। गन्ना का जूस, गुङ और शक्कर आदि का मांग बाजारों मे खूब होता हैं गर्मियों के दिनों मे गन्ना के जूस का मांग बाजार मे काफी बढ़ जाता हैं क्योंकि गन्ना के जूस का सेवन गर्मियों के दिनों मे करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता हैं। मुख्य रूप से गन्ना द्वारा चीनी एवं गुङ बनाया जाता हैं।
आज के इस लेख मे गन्ना की बुआई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी (ganna kheti ki jankari) देने की कोशिश की गई हैं। अगर आप भी गन्ना की खेती करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको गन्ना की खेती से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं।
Page Contents
गन्ना की किस्म (Ganna ki kism)
को. 98014 (Co. 98014) | को. 0118 (Co. 0118) |
को. 0238 (Co. 0238) | को. 0124 (Co. 0124) |
को. 0239 (Co. 0239) | को. 0237 (Co. 0237) |
को. 05011 (Co.05011) | सी ओ एच 119 |
सी ओ जे 64 | सी ओ 1148 |
सी ओ एच 56 | सी ओ एस 767 |
सी ओ एच 92 | सी ओ एच 110 |
सी ओ 7717 | यू.पी 9530 (U.P 9530) |
सी ओ एच 99 | कोयम्बटूर सेलेक्शन 96236 (Coimbatore Selection 96236) |
सी ओ एस 8436 | कोयम्बटूर सेलेक्शन 767 (Coimbatore Selection 767) |
कोयम्बटूर सेलेक्शन 88216 (Coimbatore Selection 88216) | कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423 (Coimbatore Selection 92423) |
कोयम्बटूर सेलेक्शन 94275 (Coimbatore Selection 94275) | कोयम्बटूर सेलेक्शन 95422 (Coimbatore Selection 95422) |
कोयम्बटूर सेलेक्शन 95255 (Coimbatore Selection 95255) | कोयम्बटूर सेलेक्शन 96436 (Coimbatore Selection 96436) |
कोयम्बटूर सेलेक्शन 92263 (Coimbatore Selection 92263) | यू पी 39 (U.P 39) |
को. पंत 3220 (Co. Pant 3220) | को. पंत 99214 (Co. Pant 99214) |
को. पू 9301 (Co. poo 9301) | बी.ओ 130 (B.O 130) |
बी.ओ 139 (B.O 139) | बी.ओ 145 (B.O 145) |
बी.ओ 153 (B.O 153) | को. पू 112 (Co. poo 112) |
को. लख. 94184 | बी.ओ 91 (B.O 91) |
बी.ओ 137 (B.O 137) | बी.ओ 110 (B.O 110) |
बी.ओ 136 (B.O 136) | बी.ओ 141 (B.O 141) |
बी.ओ 146 (B.O 146) | बी.ओ 154 (B.O 154) |
बी.ओ 128 (B.O 128) | सी ओ एस 510 |
सीओ 6304 | सीओ 62175 |
सीओएस 94270 | सीओएसई 92423 |
सीओ एस 1230 | सीओएसई 95422 |
ऊपर के सारणी मे कुछ गन्ना के किस्मों का नाम दिया गया है।
गन्ना की खेती कैसें करें (Ganna ki Kheti kaise kare)
गन्ना की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and Climate for Sugarcane Cultivation)
गन्ना की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टियों मे की जा सकती हैं लेकिन इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छा माना जाता हैं। अच्छे जल निकासी वाली भूमि इसकी खेती के लिए अच्छा होता हैं। किसानों को गन्ना की खेती (Ganna ki unnat kheti) करने के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमि का चुनाव करना इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं। गन्ना की बुआई के समय 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए।
गन्ना की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for sugarcane cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से दो बार क्रॉस जुताई करके पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। आखरी जुताई के समय गोबर की खाद को मिट्टी मे मिलाकर खेत की तैयारी करना चाहिए। किसानों को खेत की जुताई हो जाने पर सिंचाई एवं जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
गन्ना की बुआई का समय (Ganna ki buai ka samay)
गन्ना (Sugarcane Farming) की बसंत कालीन बीजाई मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक कर देनी चाहिए एवं शरद कालीन बीजाई सितंबर के दूसरे पक्ष से अक्टूबर के पहले पक्ष तक कर लेनी चाहिए। गन्ने की बुआई सही समय पर ही करना चाहिए।
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए गन्ना की बीज दर (Seed rate of sugarcane for sowing in 1 hectare)
आमतौर पर गन्ने की तीन आँख वाली एवं पंक्ति से पंक्ति की बीच की दूरी 90 सेंटीमीटर रखने पर लगभग 37 हजार टूकङे अथवा गन्ने की मोटाई एवं पोरियों की लंबाई के अनुसार 40 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ने की बीज की आवश्यकता होती हैं।
बीज की दूरी (Seed spacing)
गन्ना की बुआई हमेशा पंक्ति मे करनी चाहिए अगर गन्ना की बुआई पंक्ति मे की जा रही हो तो गन्ने की बसंत कालीन बीजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर रखे। वहीं अगर गन्ने की बीजाई शरदकालीन मौसम मे अंतः फसल के साथ की जा रही हैं तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 120 सेंटीमीटर रखे।
गन्ना के बीज का बीजोपचार (seed treatment of sugarcane seeds)
गन्ना की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है। गन्ना के बीजाई से पहले गन्ने के बीज के टूकङो को कार्बेन्डाजिम के घोल मे पाँच मिनट तक डुबोकर उपचारित करें।
गन्ना की बुआई की विधि (Ganna ki buai ki vidhi)
गन्ने की बीजाई की कई विकसित तरीके हैं जैसे कि मेढ एवं नाली विधि से सूखे मे बीजाई, ट्रेंच विधि से द्विपंक्ति मे बीजाई, गडढ़ा विधि एवं सिंगल बड सैट प्लैन्टिंग आदि इनमे से किसी भी विधि से गन्ने की बुआई की जा सकती हैं। अब तो बाजार मे गन्ना की बुआई करने की मशीन भी उपलब्ध हैं जिसकी मदद से गन्ना की रोपाई कम समय एवं कम लागत मे की जा सकती हैं जिसे शुगर केन प्लांटर (SugarCane Planter) के नाम से जानते हैं। शुगर केन प्लांटर गन्ने की रोपाई करने का कृषि यंत्र है इस यंत्र के द्वारा गन्ने की बुआई कतारों मे उचित दूरी तथा उचित गहराई पर की जाती हैं।
गन्ना की फसल मे सिंचाई (Ganna ki sichai kab kare)
गन्ने की बुआई के 20 से 30 दिनों के अंदर एक हल्की सिंचाई करे जिससे गन्ने की जमाव अच्छा हो। आवश्यकता पङने पर ही गन्ने की सिंचाई करें। वैसे तो गन्ना 8 से 10 सिंचाई मे तैयार हो जाता हैं।
गन्ना की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in sugarcane crop)
गन्ना की फसल के साथ-साथ अनचाहे खरपतवार उग आते है जो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व और उपर से दिये गए खाद एवं पानी को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों के विकास मे बाधा उत्पन्न करते हैं। जिसके कारण गन्ना की खेती (Ganna ki kheti) मे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पङ सकता हैं, अतः खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए बुआई के 45-50 दिन के बाद खुरपी की मदद से या मशीन द्वारा निदाई एवं गुङाई करें। गुङाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की पौधों की जङे न कटे। खरपतवार का नियंत्रण रासायनिक विधि द्वारा भी किया जा सकता हैं।
मिट्टी चढ़ाना (Sugarcane earthing up)
गन्ने की फसल मे समय पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए जिससे की गन्ने की फसल गिरने से बच सके। मानसून शुरू होने से पहले गन्ने की फसल मे मिट्टी चढ़ाने के कार्य को कर लेना चाहिए।
गन्ने की बंधाई (sugarcane binding)
गन्ने की फसल की अवस्था को देखते हुए जुलाई माह मे फसल की पहली बंधाई करें तथा दूसरी बंधाई अगस्त माह मे करते हैं तीसरी कैंची बंधाई अगस्त के अंतिम सप्ताह मे करे।
गन्ना की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests in sugarcane crop)
गन्ना की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट दीमक, अंकुर बेधक, चोटी बेधक, तना बेधक, गुरदासपुर बेधक एवं ग्रास हापर आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा गन्ना की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है गन्ना की फसल मे प्रमुख्य रोग लाल सङन, गन्ने के उकठा रोग, कंडुवा, पोक्हा बोईग, गन्ना मोजैक, घसैला रोग एवं गन्ने का पीत पत्र रोग आदि जैसे रोग गन्ना की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
गन्ना की फसल की कटाई (harvesting of sugarcane crop)
गन्ने की कटाई फसल की आयु, परिपक्वता, किस्म तथा बुआई के समय के आधार पर नवंबर माह से लेकर अप्रैल माह तक गन्ने की कटाई की जाती हैं। जितना गन्ना बेचना होता हैं उतना ही गन्ना की कटाई करें काफी समय तक गन्ने की कटाई करके रखने से गन्ने का वजन घटने लगता हैं एवं शुगर या सकर प्रतिशत कम हो जाता हैं। गन्ने की कटाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की हमेशा गन्ने को जमीन के सतह से ही काटे। (sugarcane farming in india)
गन्ना की उपज (yield of sugarcane)
गन्ना की उपज गन्ना की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 90 से 100 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
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